“गोद सुनी होना” मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग / God Sunil Karna Meaning In Hindi
God Sunil Karna Muhavare Ka Arth Aur Vakya Prayog / गोद सुनी करना मुहावरे का क्या मतलब होता है?
मुहावरा- “गोद सुनी होना”।
(Muhavara- God Sunil Hona)
अर्थ- संतानहीन होना / बच्चे का न होना / ममता की कमी होना / संतानसुख प्राप्त न होना ।
(Arth/Meaning In Hindi- Santanheen Hona / Bachche Ka Na Hona / Mamata Ki Kami Hona / Santan Sukh Prapt Na Hona)
“गोद सुनी होना” मुहावरे का अर्थ/व्याख्या इस प्रकार है-
परिचय:
हिंदी भाषा में अनेक मुहावरे लोक-जीवन, अनुभव और भावनाओं से उपजे हैं। वे न केवल भाषा को प्रभावशाली बनाते हैं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं को भी गहराई से व्यक्त करते हैं। ऐसा ही एक अत्यंत भावपूर्ण और संवेदनशील मुहावरा है “गोद सुनी होना”। यह मुहावरा मुख्य रूप से मातृत्व, संतान-सुख और परिवार के भावनात्मक पक्ष से जुड़ा हुआ है।
मुहावरे का शाब्दिक अर्थ:
शाब्दिक रूप में “गोद सुनी होना” का अर्थ है—माँ की गोद का खाली रह जाना। गोद का खाली रहना तभी माना जाता है जब माता-पिता को संतान का सुख प्राप्त न हो, या कोई संतान उनसे बिछड़ जाए, या किसी कारणवश घर में बच्चों की कमी हो।
मुहावरे का भावार्थ:
भावार्थ की दृष्टि से “गोद सुनी होना” केवल संतानहीन होने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह ममता की कमी, वात्सल्य के अभाव और जीवन में अधूरेपन की अनुभूति को भी व्यक्त करता है। यह मुहावरा मनुष्य के जीवन में उस भावनात्मक खालीपन की ओर इशारा करता है, जो बच्चे न होने या उनसे दूर हो जाने पर महसूस किया जाता है।
सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ:
भारतीय समाज में सदियों से संतान को बड़ी महत्ता दी गई है। संतान को परिवार की विरासत, वंश और भविष्य का आधार माना जाता रहा है। विशेषकर मातृत्व की दृष्टि से, बच्चों का होना स्त्री के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष माना गया है। यही कारण है कि “गोद सुनी होना” जैसे मुहावरे में भावनात्मक वेदना, अधूरापन, और मातृ-स्नेह की तड़प छिपी हुई है।
यह मुहावरा केवल जैविक मातृत्व के संदर्भ में ही नहीं, बल्कि दत्तक, सौतेले, अथवा किसी भी प्रकार के मातृत्व-संबंध में उतनी ही सघनता से लागू होता है। इसके माध्यम से समाज यह बताता है कि बच्चे केवल परिवार की जिम्मेदारी ही नहीं, बल्कि जीवन में आनन्द, हँसी और जीवंतता भी लेकर आते हैं।
उदाहरण के साथ अर्थ स्पष्ट करना:
यदि किसी दंपति को वर्षों तक संतान नहीं होती, तो कहा जाता है—
“उनकी गोद आज भी सुनी है।”
यदि कोई बच्चा अचानक किसी बीमारी या दुर्घटना में खो जाए, तो शोक व्यक्त करते हुए कहा जाता है—
“उस दुखद घटना ने माता-पिता की गोद हमेशा के लिए सुनी कर दी।”
यदि बेटे-बेटियाँ विदेश में नौकरी या पढ़ाई के लिए दूर चले जाएँ और माता-पिता अकेले रह जाएँ, तब भी कहा जाता है—
“संतान होते हुए भी उनकी गोद सुनी-सी हो गई है।”
इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि यह मुहावरा केवल संतानहीनता नहीं, बल्कि भावनात्मक दूरी और मातृत्व की कमी दोनों को व्यक्त करता है।
भारतीय साहित्य में प्रयोग:
कई कहानियों, उपन्यासों और कविताओं में “गोद सुनी होना” का प्रयोग अत्यंत मार्मिक परिस्थितियों को दर्शाने के लिए किया गया है। जब भी किसी महिला पात्र को संतानहीन दिखाना हो या उसकी ममता को उभारना हो, तब लेखक इस मुहावरे का सहारा लेते हैं। यह मुहावरा पाठक के मन में तुरंत एक कोमल, संवेदनशील और दुखपूर्ण चित्र उकेर देता है।
मानवीय संवेदनाओं का प्रतीक:
मानव जीवन में सुख-दुख, मिलन-विरह और आशा-निराशा का सिलसिला चलता रहता है। मातृत्व या पितृत्व से जुड़ी अनुभूतियाँ सबसे कोमल और गहरी होती हैं। जब जीवन में वह कोमल स्पर्श, वह मासूम हँसी, वह चंचलता अनुपस्थित हो, तो जीवन में एक अधूरापन महसूस होता है। यही अधूरापन “गोद सुनी होना” मुहावरे में बखूबी झलकता है।
यह मुहावरा कई बार माता-पिता की मानसिक पीड़ा, उनकी उम्मीदों और सामाजिक परिस्थितियों को भी दर्शाता है। संतान की कमी भारतीय परिवारों की सामाजिक संरचना में कई प्रकार की चुनौतियाँ भी उत्पन्न करती रही है, जिनका असर भावनात्मक रूप से भी देखा जाता है।
लोक-जीवन में प्रभाव:
गाँवों, कस्बों और पारंपरिक परिवारों में यह मुहावरा आज भी व्यापक रूप से इस्तेमाल होता है। लोग इसे संवेदना प्रकट करने के लिए भी उपयोग करते हैं। जब कोई महिला दूज, करवा चौथ, अष्टमी जैसे पारिवारिक त्योहारों में “गोद सुनी” होकर बैठती है, तो उसकी पीड़ा और अधिक स्पष्ट दिखाई देती है।
मुहावरे का व्यापक अर्थ:
हालाँकि यह मुहावरा मूलतः मातृत्व से जुड़ा है, परंतु आधुनिक संदर्भ में इसका अर्थ और व्यापक हो गया है। अब इसे किसी भी प्रकार की भावनात्मक रिक्तता या अधूरेपन को व्यक्त करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण: यदि किसी शिक्षक की कक्षा में अचानक बच्चे कम आएँ तो वे मजाक में कह सकते हैं—
“आज तो मेरी गोद सुनी है।”
यह प्रयोग हल्के-फुल्के हास्य के रूप में किया जाता है।
“गोद सुनी होना” मुहावरे का वाक्य प्रयोग / God Sunil Hona Muhavare Ka Vakya Prayog.
1. वर्षों की शादी के बाद भी उनकी गोद सुनी ही रही।
2. बेटे की विदेश नौकरी से जाने के बाद माँ की गोद सुनी-सी हो गई।
3. दुर्घटना ने उस माँ की गोद हमेशा के लिए सुनी कर दी।
4. शादी को दस साल हो गए, पर उनकी गोद आज भी सुनी है।
5. पड़ोसन की गोद सुनी देखकर सभी को उसकी पीड़ा समझ आती है।
6. बच्चा घर में नहीं होता तो लगता है जैसे गोद सुनी है।
7. दंपति ने अपनी सुनी गोद भरने के लिए एक बच्चे को गोद लिया।
8. उसके जाते ही दादी की गोद फिर से सुनी पड़ गई।
9. बेटे की नौकरी के चलते माँ की गोद कई सालों से सुनी है।
10. दुर्घटना के बाद उस परिवार की गोद सुनी हो गई।
11. समय के साथ सुनी गोद की पीड़ा और ज्यादा बढ़ गई।
12. उसके बच्चे के स्कूल चले जाने पर दिन में उसकी गोद सुनी रहती है।
13. नई बहू आने के बाद दादी की गोद की सुनापन धीरे-धीरे दूर हुआ।
14. युद्ध में बेटे के खो जाने से माँ की गोद सुनी हो गई।
15. बच्चों के होस्टल जाने से माता-पिता की गोद सुनी लगती थी।
16. घर में बच्चों की किलकारी न होने से उनकी गोद सुनी थी।
17. उन्होंने व्रत रखा कि ईश्वर उनकी सुनी गोद भर देगा।
18. बच्चे नहीं होने के कारण समाज उसे सुनी गोद वाली कहता था।
19. त्यौहारों पर बिना बच्चों के घर का हर कोना गोद सुनी जैसा लगता था।
20. गोद में बच्चा न होने से वह हमेशा गोद सुनी होने का दर्द छिपाती रही।
21. उसकी यह मुस्कान भी सुनी गोद की पीड़ा छुपा रही थी।
22. बचपन में भाई के खोने से माँ की गोद सुनी रह गई।
23. अनाथालय में बच्चे देखकर उसकी सुनी गोद भरने की इच्छा हुई।
24. सबके बच्चे खेल रहे थे, वहीं उसकी गोद सुनी पड़ी थी।
25. बुढ़ापे में अकेलेपन ने उनकी गोद सुनी होने का अहसास बढ़ा दिया।
26. पति-पत्नी की सुनी गोद देखकर सभी ने उनकी मदद की।
27. घर में बच्चे के रोने की आवाज न होने से गोद सुनी-सी लगती थी।
28. उन्होंने अपने जीवन की सुनी गोद को दत्तक लेकर भर लिया।
29. कई उपचारों के बाद भी उनकी गोद सुनी ही रही।
30. बच्चा मिलने की खबर ने उनकी सुनी गोद में नई खुशियाँ भर दीं।
निष्कर्ष:
“गोद सुनी होना” एक अत्यंत भावनात्मक और संवेदनशील मुहावरा है, जो मातृत्व और परिवार के उस खालीपन को चित्रित करता है, जिसे केवल संतान ही भर सकती है। यह मुहावरा न केवल शारीरिक अनुपस्थिति को दर्शाता है, बल्कि मन के भीतर उठने वाले दर्द, तड़प, आशा और अधूरेपन को भी बड़े मार्मिक तरीके से व्यक्त करता है। भारतीय सांस्कृतिक संदर्भ में यह मुहावरा व्यक्ति के जीवन की उस गहरी अनुभूति का प्रतीक बन जाता है, जिसे अनुभव किए बिना समझ पाना कठिन है।
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