“सूर्यकन्या छठी मईया: भक्ति, आस्था और उजास की अमर कथा” / Chhathi Maiya Ki Kahani
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Chhath Ki Kahani / Chhath Kyu Manate Hai / छठ महापर्व की कहानी ।
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| Chhathi Maiya Ki Kahani |
प्रस्तावना:
कार्तिक माह की ठंडी हवाएँ बह रही थीं। घाटों पर मिट्टी के दीये जल चुके थे। गन्ने के तोरण, केले के पत्ते, और जल से भरे पीतल के कलश की कतारें गंगा किनारे एक अद्भुत दृश्य बना रही थीं। ढोल-नगाड़ों की ध्वनि और “छठी मईया के जयकारे” से पूरा आकाश गूंज रहा था। यह दृश्य केवल एक पर्व का नहीं, बल्कि आस्था, संयम और सूर्योपासना की एक शाश्वत परंपरा का था, छठ पर्व।
लेकिन इस कथा की जड़ें बहुत गहरी हैं। यह केवल पूजा नहीं, बल्कि मानव और प्रकृति, सूर्य और जीवन, भक्ति और मातृत्व के संगम की कहानी है, एक ऐसी कहानी जो युगों से चलती आई है और आज भी लाखों दिलों में विश्वास का दीप जलाती है।
अध्याय 1: छठी मईया का उद्गम
कहा जाता है कि छठी मईया, जिन्हें उषा या षष्ठी देवी के नाम से भी जाना जाता है, सूर्यदेव की बहन हैं। वे प्रकृति की वह दिव्य शक्ति हैं जो जीवन, संतान और स्वास्थ्य की रक्षा करती हैं।
जब सृष्टि का आरंभ हुआ, तब सूर्यदेव ने पृथ्वी को प्रकाश दिया। लेकिन जब अंधकार और असंतुलन बढ़ा, तब सूर्य ने अपनी तेजस्विनी शक्ति से एक दिव्या का सृजन किया, वह थीं षष्ठी देवी, जिन्होंने संसार में प्राण और संतुलन स्थापित किया।
उन्हें वरदान मिला, “जो भी श्रद्धा और संयम से सूर्य उपासना करेगा, मैं उसकी रक्षा करूँगी। उसके घर में सुख, संतान और समृद्धि कभी कम नहीं होगी।”
यही कारण है कि छठ पूजा में सूर्यदेव और षष्ठी माता (छठी मईया) की संयुक्त आराधना की जाती है।
अध्याय 2: सीता माता और छठ का आरंभ
त्रेतायुग में, जब भगवान श्रीराम अयोध्या लौटे और रामराज्य की स्थापना हुई, तब माता सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को सूर्यदेव और षष्ठी देवी की पूजा की। उन्होंने व्रत रखा, नदी में डुबकी लगाई और अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया।
सीता ने प्रार्थना की-
“हे सूर्यदेव, आप सृष्टि के आधार हैं। आपकी बहन षष्ठी मईया के आशीर्वाद से सबका कल्याण हो।”
कहा जाता है कि उस दिन से छठ पर्व की शुरुआत हुई।
इसके बाद पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी इस व्रत को किया। महाभारत के समय जब पांडव वनवास में थे, द्रौपदी ने छठ का व्रत रखकर सूर्यदेव से अपने पतियों के कल्याण की कामना की।
सूर्यदेव प्रसन्न हुए और द्रौपदी को “अक्षय पात्र” का वरदान दिया, जिससे कभी अन्न की कमी नहीं हुई।
युग बदलते गए, पर यह व्रत स्त्रियों की आस्था का प्रतीक बन गया, माँ की ममता और नारी की शक्ति का उत्सव।
अध्याय 3: आधुनिक युग की आरती – “सुजाता की कहानी”
पटना शहर के किनारे एक छोटा-सा मोहल्ला था, दीघा घाट के पास।
वहीं रहती थी सुजाता- एक शिक्षिका, दो साल के बेटे की माँ। उसके पति रवि का दो साल पहले एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया था। तब से सुजाता ने अकेले अपने बच्चे को पालने का संकल्प लिया था।
जीवन कठिन था, पर उसके भीतर एक अडिग विश्वास था- छठी मईया पर।
हर साल वह अपनी माँ के साथ छठ व्रत करती थी। लेकिन इस बार सबकुछ अलग था- अब माँ नहीं रहीं, पति नहीं रहा, और घर में बस वह और उसका नन्हा बेटा “आरव” था।
लोग कहते- “अरे, अकेली औरत को इतना कठिन व्रत क्यों करना चाहिए? न खाना, न पानी चार दिन!”
पर सुजाता मुस्कुराती-
“मईया की कृपा से ही तो मेरा आरव है। जब तक साँस है, छठ का व्रत करती रहूँगी।”
अध्याय 4: व्रत की शुरुआत- नहाय-खाय से संकल्प तक
सुजाता ने गंगा किनारे स्नान किया, मिट्टी के चूल्हे पर कद्दू-भात बनाया और मईया का प्रसाद चढ़ाया। वह दिन था नहाय-खाय का- छठ पर्व का पहला दिन।
दूसरे दिन खरना- उसने पूरे दिन निर्जला व्रत रखा।
शाम को जब चाँद निकला, उसने गन्ने के बीच मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ की खीर बनाई, केले और चावल की रोटी के साथ मईया को भोग लगाया।
फिर प्रसाद सबको बाँटा, पड़ोस की वृद्धा, बच्चों और राहगीरों को भी।
तीसरे दिन, यानी संध्या अर्घ्य के दिन, वह आरव को लेकर घाट पर पहुँची। सूरज अस्त हो रहा था, लाल किरणें गंगा के पानी में सोने की लकीरें खींच रही थीं।
सैकड़ों महिलाएँ गन्ने के तोरण के नीचे जल में खड़ी थीं, हाथ जोड़कर कह रहीं थीं-
“छठी मईया, अंगना में आवs न!”
सुजाता ने भी आरव को गोद में लिया, आँखें बंद कीं और मईया से कहा-
“मईया, मेरे बेटे को सुखी रखना। मुझे हिम्मत देना कि मैं उसके लिए जग सको।”
अचानक आरव ने अपने छोटे हाथ जोड़ दिए और बोला-
“मईया, मम्मा को मत रुलाना।”
सुजाता की आँखों से आँसू बह निकले, पर उसके भीतर एक अनोखी शांति उतर आई। उसे लगा जैसे मईया ने उसके दिल में हाथ रखकर कहा-
“बिटिया, तेरा दर्द मैंने सुन लिया है।”
अध्याय 5: छठ की रात – अद्भुत दर्शन
रात गहरी हो चली थी।
सुजाता अपने आँगन में सोई थी, पर नींद कहीं दूर थी। अचानक उसकी आँख खुली, उसे लगा जैसे कोई उसके आँगन में दीप जला रहा हो।
वह उठी तो देखा, गन्ने के बीच से एक मृदुल प्रकाश निकल रहा है। उस प्रकाश में एक सुनहरी आभा वाली स्त्री खड़ी थीं, माथे पर सिंदूर, सिर पर लाल आँचल, और हाथ में सूर्यकमल।
वे बोलीं-
“डर मत, बिटिया। मैं छठी मईया हूँ। तेरे विश्वास ने मुझे यहाँ बुलाया है।”
सुजाता अवाक् रह गई। वह उनके चरणों में गिर पड़ी।
“मईया, मुझे बस इतना आशीर्वाद दो कि मेरा बेटा बड़ा होकर अच्छा इंसान बने।”
मईया मुस्कुराईं-
“तेरा पुत्र सूर्य समान तेजस्वी होगा। तेरी आस्था ही उसका पथप्रकाश बनेगी।”
अगले ही क्षण वह प्रकाश विलीन हो गया।
सुजाता के मन में एक मधुर शांति फैल गई, मानो किसी ने भीतर की टूटन को जोड़ दिया हो।
अध्याय 6: उदयमान सूर्य और पूरब का उजाला
अगली सुबह- कार्तिक शुक्ल सप्तमी।
पूर्व दिशा में सूरज की लाल किरणें गंगा पर झिलमिला रही थीं। सुजाता ने आरव को गोद में लिया और घाट के पानी में खड़ी हुई।
हाथ में ठेकुआ, गुड़, और दूध का अर्घ्य। आसपास सैकड़ों महिलाएँ भी खड़ी थीं, हर चेहरे पर वही आस्था, वही विश्वास।
सूर्य की पहली किरण जैसे ही जल को छूई, सबकी आँखें नम हो गईं।
“जय छठी मईया!”
“जय सूर्यदेव!”
सुजाता ने अर्घ्य चढ़ाया, फिर आरव के माथे पर हल्दी का टीका लगाया और मन ही मन कहा-
“मईया, आपने मुझे शक्ति दी। अब मैं कभी नहीं डरूँगी।”
जब वह घाट से लौटी, उसे लगा जैसे उसके भीतर एक नई ऊर्जा का जन्म हुआ हो। उसके चेहरे पर वही तेज था, सूर्यकन्या छठी मईया का तेज।
अध्याय 7: छठी मईया का संदेश
छठ पर्व सिर्फ एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि मानव और प्रकृति के संतुलन का प्रतीक है।
इस व्रत में जो संयम है, चार दिनों तक बिना नमक, बिना जल, बिना किसी विलास के उपवास ,वह हमें सिखाता है कि
“शुद्ध मन से की गई प्रार्थना ही सबसे बड़ा वरदान है।”
छठी मईया, जो षष्ठी देवी हैं, मातृत्व और सृजन की देवी हैं। वे हर माँ में, हर बहन में, हर नारी में बसती हैं।
उनकी कृपा केवल संतान की रक्षा तक सीमित नहीं, वे देती हैं साहस, स्थिरता और प्रकाश।
उपसंहार:
आज वर्षों बाद- आरव बड़ा हो चुका था।
वह इंजीनियर बन गया, पर हर साल माँ के साथ घाट पर आता।
सुजाता की आँखों में वही चमक होती, जैसे उस दिन पहली बार छठी मईया ने उसके आँगन में दीप जलाया था।
वह आरव से कहती-
“बेटा, छठ केवल व्रत नहीं, विश्वास है। यह हमें सिखाता है कि जब जीवन अंधकार में डूबे, तब सूर्य की ओर मुख कर लो, उजाला स्वयं रास्ता ढूँढ लेगा।”
आरव मुस्कुराता और कहता-
“माँ, आप ही मेरी छठी मईया हैं।”
और उस क्षण, गंगा के जल में झिलमिलाती सूर्यकिरणें मानो स्वयं गवाही देतीं-
कि छठ की आस्था कभी मुरझाती नहीं, वह पीढ़ी दर पीढ़ी सूर्य की तरह चमकती रहती है।
संदेश:
छठी मईया की यह कथा केवल पूजा की नहीं,
यह है नारी के अटूट विश्वास, मातृत्व की करुणा और सूर्योपासना के शाश्वत ज्ञान की कहानी।
यह हमें सिखाती है कि जब हम प्रकृति का सम्मान करते हैं, तब जीवन स्वयं अनुग्रह बन जाता है।
समापन पंक्तियाँ:
जहाँ भोर की पहली किरण पड़े,
वहाँ मईया की ममता झरती है।
जहाँ जल में अर्घ्य समर्पित हो,
वहाँ सूर्य की कृपा बरसती है।
और जहाँ नारी का विश्वास अडिग हो,
वहाँ स्वयं छठी मईया निवास करती हैं।
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