“गधे को बाप बनाना” मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग / Gadhe Ko Baap Banana Meaning In Hindi

  Gadhe Ko Baap Banana Muhavare Ka Arth Aur Vakya Prayog / गधे को बाप बनाना मुहावरे का क्या मतलब होता है? मुहावरा– “गधे को बाप बनाना”। (Muhavara- Gadhe Ko Baap Banana) अर्थ- अपना काम निकालने के लिए मूर्ख व्यक्ति की खुशामद करना / स्वयं का स्वार्थ सिद्ध करने के लिए चापलूसी करना । (Arth/Meaning in Hindi- Apna Kam Nikalne Ke Liye Murkh Vyakti Ki Khushamad Karna / Svyam Ka Swarth Sidhh Krne Ke Liye Chaplusi Karna) “गधे को बाप बनाना” मुहावरे का अर्थ/व्याख्या इस प्रकार है- शब्दार्थ: इस मुहावरे में “गधा” का अर्थ मूर्ख, अज्ञानी या निर्बुद्धि व्यक्ति से लिया गया है, और “बाप बनाना” का अर्थ किसी को अपना श्रेष्ठ, आदरनीय या मालिक मान लेना होता है। अर्थात् – “गधे को बाप बनाना” का सीधा तात्पर्य है किसी मूर्ख, अयोग्य या अक्षम व्यक्ति को अपना स्वामी, नेता, मार्गदर्शक या सम्माननीय मान लेना। मुख्य अर्थ: “गधे को बाप बनाना” मुहावरा उस स्थिति को दर्शाता है जब कोई व्यक्ति स्वार्थवश, डर के कारण, या अपनी अयोग्यता के कारण किसी ऐसे व्यक्ति को आदर देने लगता है जो वास्तव में उस योग्य नहीं है। यह मुहावरा समाज मे...

“मौत का सौदा” हिंदी कहानी / Hindi Story Maut Ka Sauda


Hindi Kahani Maut Ka Sauda / हिंदी कहानी मौत का सौदा / मौत का सौदा हिंदी स्टोरी ।



कहानी- मौत का सौदा:

रात के साढ़े बारह बजे का समय था। शहर के बाहरी इलाके में बने पुराने गोदाम में हल्की-हल्की पीली रोशनी झिलमिला रही थी। बाहर कुत्तों के भौंकने की आवाज़, हवा में फैला धुएँ और सीलन का मिश्रण, और अंदर—बंद दरवाज़ों के पीछे चल रही थी सौदेबाज़ी, जो किसी की जान पर खत्म होने वाली थी।


शहर के अंधेरे में:

अनिकेत वर्मा, एक जाने-माने पत्रकार, अपने कैमरे के साथ शहर के अपराध जगत की तस्वीरें उकेरता था। वह जानता था कि उसकी इस बार की रिपोर्ट किसी बम से कम नहीं होगी। पिछले कुछ महीनों में शहर में कई गायब हुए लोग, अवैध हथियारों की खेप, और एक रहस्यमयी व्यक्ति—“खान साहब”—की चर्चाएँ थीं। कहा जाता था कि खान साहब वही करते थे जो कोई और करने की हिम्मत न करे। और यही उसका कोड नेम था—“मौत का सौदागर”।

अनिकेत को एक गुप्त सूचना मिली थी कि आज रात खान साहब खुद इस गोदाम में आएगा। पत्रकार के रोम-रोम में सिहरन दौड़ गई। यह वही मौका था, जब वह इस रहस्यमय व्यक्ति की तस्वीर दुनिया के सामने ला सकता था।


सौदेबाज़ी की शुरुआत:

गोदाम के अंदर पुराने लकड़ी के क्रेट्स और लोहे के कंटेनर रखे थे। बीच में एक बड़ी गोल मेज़, चारों ओर भारी-भरकम गार्ड। मेज़ पर नक्शे, लैपटॉप और मोटे लिफ़ाफ़े पड़े थे। तभी एक काली एसयूवी आकर रुकी। दरवाज़ा खुला और बाहर निकला—खान साहब। लंबा कद, हल्की दाढ़ी, गहरे भूरे कोट में लिपटा चेहरा। उसके पीछे दो आदमी ब्रीफ़केस लेकर चल रहे थे।

“सब तैयार है?” उसकी आवाज़ धीमी लेकिन काँपती हुई ताकत से भरी थी।

एक आदमी ने सिर हिलाया—“हाँ खान साहब, लेकिन इस बार डील बड़ी है।”

खान साहब मुस्कुराया—“बड़ी डील ही असली डील होती है।”

अनिकेत यह सब पास की खिड़की के टूटे शीशे से देख रहा था। उसका कैमरा लगातार क्लिक कर रहा था।


सौदा- मौत का:

मेज़ पर पड़े नक्शे पर खान साहब की उँगली घूमी—“यहाँ से माल लाना है। अगले हफ़्ते शहर के बीचोबीच इसकी डिलीवरी होगी। पुलिस को भनक नहीं लगनी चाहिए।”

दूसरा आदमी बोला—“पुलिस को सब खरीद लिया है। बस एक दिक्कत है—एक पत्रकार हमारा पीछा कर रहा है।”

खान साहब ने हल्की हँसी हँसी—“पत्रकार… वे भी सौदे का हिस्सा होते हैं।”

अनिकेत के सीने में धड़कन तेज़ हो गई। उसे लगा कहीं उसकी तस्वीर सामने न आ जाए।


अतीत के दरवाज़े:

खान साहब का असली नाम रफीक़ अहमद था। कभी वह भी इस शहर के नामी समाजसेवी हुआ करता था। लेकिन एक गलत सौदे, कुछ ग़लत दोस्तों और सत्ता की भूख ने उसे अंधे रास्तों पर धकेल दिया। उसने सीखा—“पैसा सबसे बड़ा धर्म है।”

शुरू में उसने केवल अवैध शराब और जुए के धंधे को हाथ लगाया। फिर धीरे-धीरे हथियारों की तस्करी, अपहरण और “कॉन्ट्रैक्ट किलिंग” तक आ गया। वह अब किसी की जान लेने को भी “सौदा” कहता था। इसीलिए लोग उसे “मौत का सौदागर” कहने लगे।

लेकिन उसके दिल के किसी कोने में अब भी एक पुराना दर्द, पुराना पछतावा जिंदा था—उसकी बहन ज़ोया, जो एक गैंग वार में मारी गई थी। रफीक़ मानता था कि ज़ोया की मौत के पीछे भी वही लोग थे, जिनसे वह अब सौदा कर रहा था।


मोर्चा बदलने का इरादा:

अनिकेत की रिपोर्टिंग ने उसे बहुत दुश्मन दिए। लेकिन उसके पास सबूत भी थे। इस बार वह सिर्फ रिपोर्ट नहीं करेगा, बल्कि पुलिस को सबूत सौंप देगा।

रात के अंधेरे में उसने अपनी गाड़ी में बैठकर मोबाइल से एसआईटी के अफसर—विक्रम राठौड़—को कॉल किया। “सर, मेरे पास खान साहब की पूरी रिकॉर्डिंग है। आप बस सही समय पर रेड करिए।”

विक्रम ने कहा—“अनिकेत, ध्यान रखना। ये लोग मजाक नहीं करते।”

अनिकेत ने कहा—“मुझे पता है सर। पर अब यह शहर इनके डर में नहीं जी सकता।”


मौत का मोल:

गोदाम में एक और नई गाड़ी आकर रुकी। उसमें से एक और गिरोह का सरगना उतरा—सलीम शेख। उसने खान साहब से हाथ मिलाते हुए कहा—“यह आखिरी सौदा है, उसके बाद सब साफ़। 200 करोड़ का माल, अगले महीने तक।”

खान साहब ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा—“200 करोड़? इतनी बड़ी रकम के लिए बहुत बड़ी कीमत भी देनी पड़ेगी।”

सलीम हँसा—“कीमत तो हमने तय कर ली है।”

खान साहब के चेहरे पर एक पल को गुस्सा आया। “याद रख, यहाँ कीमत मैं तय करता हूँ।”


खेल पलटता है:

खिड़की के पास खड़े अनिकेत ने देखा—दो गार्ड धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ रहे हैं। शायद उन्होंने उसकी आहट पकड़ ली थी। अनिकेत ने मोबाइल जेब में रखा और कैमरा उठाया। लेकिन तभी पीछे से एक हथियार उसके सिर पर रखा गया।

“ज़्यादा जासूसी कर ली तूने,” गार्ड ने कहा।

अनिकेत को गोदाम के अंदर खींचकर लाया गया। सबकी नजर उस पर थी। खान साहब ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा।

“तो तू ही है वो पत्रकार?”

अनिकेत ने हिम्मत जुटाकर कहा—“हाँ, और मैंने सब रिकॉर्ड किया है। पुलिस आ रही है।”

खान साहब मुस्कुराया—“पुलिस? बेटा, पुलिस मेरे इशारे पर चलती है।”


एक अप्रत्याशित मोड़:

तभी खान साहब के फोन पर कॉल आया। उसने उठाया, दूसरी तरफ विक्रम राठौड़ था।

“खान साहब,” आवाज़ आई, “यहाँ कोई गलती मत करना। हम तुम्हारे चारों ओर हैं।”

खान साहब ने एक पल सोचा, फिर फोन काट दिया। उसने अपने गार्डों को इशारा किया—“इसे बाँध दो।”

अनिकेत को कुर्सी से बाँध दिया गया। उसका कैमरा, मोबाइल सब ले लिया गया।


अतीत का सच और मोचन:

अनिकेत ने देखा कि खान साहब की आँखों में एक अजीब सा दर्द है। वह बोला—“तुम्हें ज़रा भी डर नहीं लगता? तुम कितनी ज़िंदगियों के साथ खेल चुके हो।”

खान साहब ने धीमे स्वर में कहा—“डर मुझे भी लगता है… लेकिन अब इस खेल से निकलना आसान नहीं।”

अनिकेत ने कहा—“अगर तुम सच में निकलना चाहते हो तो यह मौका है। पुलिस बाहर खड़ी है। तुम गवाही दो, सबूत दो, शायद तुम्हारी सजा कम हो।”

खान साहब कुछ पल के लिए चुप हो गया। उसकी आँखों में ज़ोया की तस्वीर उभर आई।


पुलिस का छापा:

बाहर से अचानक सायरन की आवाज़ गूँज उठी। चारों ओर रेड लाइट्स चमकने लगीं। पुलिस ने गोदाम को घेर लिया। गोलीबारी शुरू हो गई। गार्ड और पुलिस में भयंकर मुठभेड़ होने लगी।

खान साहब ने अनिकेत की ओर देखा। “शायद यही मौका है…” उसने बगल में रखी पिस्तौल उठाई, लेकिन पुलिस पर नहीं चलाई। उसने अनिकेत की रस्सियाँ काट दीं।

“भाग जा,” उसने कहा।

अनिकेत हक्का-बक्का रह गया—“और तुम?”

“मेरा हिसाब मुझे ही चुकाना है,” खान साहब ने कहा।


अंत का सौदा:

गोलीबारी के बीच सलीम शेख भागने लगा। खान साहब ने उसका पीछा किया। दोनों एक-दूसरे पर गोली चलाते हुए पुराने कंटेनरों के पीछे छिप गए। सलीम चिल्लाया—“तूने धोखा दिया, खान!”

खान साहब चिल्लाया—“धोखा मैंने नहीं, तूने मेरी बहन को मारा था!”

दोनों के बीच आखिरी गोली चली। सलीम गिर पड़ा। खान साहब भी घायल हो गया।

अनिकेत पुलिस के साथ बाहर निकला। विक्रम राठौड़ ने उसे सुरक्षित बाहर किया।

“खान साहब कहाँ है?” विक्रम ने पूछा।

अनिकेत ने कहा—“वह… अंदर है।”


अंतिम सांस:

पुलिस अंदर पहुँची। खान साहब खून से लथपथ पड़ा था। उसके हाथ में वही पिस्तौल थी, लेकिन उसने खुद को नहीं मारा था। उसने पुलिस को देखकर कहा—“मैं… गवाही दूँगा… सब बताऊँगा।”

लेकिन इतनी देर हो चुकी थी। उसके होंठों पर आखिरी शब्द निकला—“ज़ोया…” और उसकी आँखें बंद हो गईं।


नई सुबह:

अगली सुबह अख़बारों की सुर्खियाँ थीं—“मौत का सौदागर ढेर—सौ करोड़ के हथियारों का जाल उजागर।”

अनिकेत ने अपने चैनल पर पूरी स्टोरी दिखाई। उसने बताया कि कैसे एक अपराधी के दिल में भी इंसानियत की आखिरी चिंगारी बची थी।

शहर ने राहत की साँस ली। लेकिन अनिकेत जानता था कि अपराध का यह खेल खत्म नहीं हुआ, बस एक अध्याय बंद हुआ है।


सन्देश:

कहानी ने यह साबित किया कि चाहे कोई कितना भी बड़ा अपराधी क्यों न हो, इंसानियत की एक किरण उसके भीतर कहीं न कहीं रहती है। लेकिन अपराध का रास्ता अंततः मौत या जेल तक ही जाता है।


सीख:

“मौत का सौदा” कहानी से हमें ये प्रमुख सीखें मिलती हैं:

1. अपराध का रास्ता अंततः विनाश की ओर जाता है

चाहे शुरुआत कितनी भी छोटी क्यों न हो, अपराध की दुनिया धीरे-धीरे इंसान को “मौत का सौदागर” बना देती है। अंत में वही व्यक्ति या तो जेल में होता है या मौत के हवाले।

2. पैसे और सत्ता का लालच इंसानियत को मार देता है

रफीक़ (खान साहब) समाजसेवी से अपराधी इसलिए बना क्योंकि उसे सत्ता और धन का लालच था। यह दिखाता है कि लालच इंसान को नैतिकता से भटका सकता है।

3. पछतावे और आत्मबोध की शक्ति

चाहे व्यक्ति कितना भी बुरा क्यों न बन जाए, उसके भीतर इंसानियत की चिंगारी बची रहती है। सही समय पर आत्मबोध और पछतावा उसे बदलने की कोशिश करा सकता है।

4. सच्चाई और साहस की जीत

अनिकेत का पत्रकारिता और ईमानदारी से काम करना दिखाता है कि सच्चाई बोलने और जोखिम उठाने वाले लोग समाज में बदलाव ला सकते हैं।

5. न्याय देर से हो, लेकिन होता जरूर है

अपराधी कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, अंत में कानून और न्याय का शिकंजा उससे नहीं बचता।

6. बदला और हिंसा कभी समाधान नहीं

खान साहब की बहन की मौत के बाद उसका अपराध की ओर जाना बताता है कि बदला लेने से जीवन और बिगड़ता है, सुधरता नहीं।

7. समाज को जागरूक रहना जरूरी है

अपराध केवल अपराधियों की वजह से नहीं, बल्कि चुप रहने वाले लोगों और भ्रष्ट तंत्र की वजह से भी फलता-फूलता है। पत्रकार, ईमानदार पुलिस और जागरूक जनता ही इसे रोक सकते हैं।


समापन:

“मौत का सौदा” केवल एक अपराध कथा नहीं, बल्कि मानव मन की जटिलता और अपराध-जगत के पीछे छिपे सच की झलक है। इसमें हमने दिखाया कि कैसे लालच, सत्ता और बदला इंसान को ‘मौत का सौदागर’ बना सकता है और कैसे पछतावे व आत्मबोध की एक झलक इंसान को मोचन की ओर ले जा सकती है।



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