“गुस्सा पीना” मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग / Gussa Peena Meaning In Hindi
Gussa Pina Muhavare Ka Arth Aur Vakya Prayog / गुस्सा पीना मुहावरे का क्या मतलब होता है?
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Gussa Pina |
मुहावरा- “गुस्सा पीना”।
(Muhavara Gusa Peena)
अर्थ: सहनशील होना / गुस्से को भीतर दबाना, प्रकट न करना / गुस्सा आने पर शांत रहना / क्रोध को दबा लेना।
(Arth/Meaning in Hindi- Sahansheel Hona / Gusse Ko Bhitar Dabana, Prakat Na Karna / Gussa Aane Par Shant Rahna / Krodh Ko Daba Lena)
भावार्थ: धैर्य, संयम, विवेक और सामाजिक मर्यादा को बनाए रखना।
उदाहरण: “मालिक की डाँट सुनकर वह गुस्सा पी गया।”
महत्व: सामाजिक संबंध, कार्यस्थल और पारिवारिक जीवन में शांति व संतुलन बनाए रखने में सहायक।
“गुस्सा आना” मुहावरे का अर्थ/व्याख्या इस प्रकार है-
प्रस्तावना:
हिन्दी भाषा में मुहावरे हमारी बोली और लेखन को सजीव, सशक्त और प्रभावशाली बनाते हैं। ये न केवल हमारे विचारों को संक्षेप में व्यक्त करते हैं, बल्कि भावनाओं और परिस्थितियों को भी स्पष्ट कर देते हैं। “गुस्सा पीना” ऐसा ही एक प्रचलित मुहावरा है, जो हमारी भावनात्मक स्थिति, विशेषकर आत्म-संयम और धैर्य को व्यक्त करता है।
“गुस्सा पीना” मुहावरे का शाब्दिक अर्थ:
“गुस्सा पीना” शब्दशः देखने पर ऐसा लगता है जैसे गुस्से को पी लिया जाए, परंतु वास्तव में इसका अर्थ गुस्से को भीतर ही दबा लेना या प्रकट न करना होता है। अर्थात् जब कोई व्यक्ति किसी कारणवश बहुत नाराज़ या क्रोधित हो, लेकिन वह परिस्थिति, समाज, पद या शिष्टाचार के कारण उसे बाहर व्यक्त न करे और अपने क्रोध को भीतर ही रोक ले, तो इसे “गुस्सा पीना” कहते हैं।
उदाहरण:
शिक्षक की डाँट पर छात्र ने गुस्सा पी लिया।
बॉस की गलतियों के बावजूद कर्मचारी ने नौकरी बचाने के लिए गुस्सा पी लिया।
भावार्थ और प्रयोग:
“गुस्सा पीना” का भावार्थ आत्म-संयम और सहनशीलता से जुड़ा है। इस मुहावरे के प्रयोग से यह स्पष्ट होता है कि व्यक्ति परिस्थिति के अनुसार अपने क्रोध पर नियंत्रण रख रहा है।
यह मुहावरा किसी के धैर्यवान होने का संकेत देता है।
यह दर्शाता है कि व्यक्ति आवेश में आकर गलत प्रतिक्रिया देने से बच रहा है।
यह भी स्पष्ट करता है कि किसी कारणवश व्यक्ति अपनी भावनाएँ दबा रहा है।
मुहावरे का व्याख्या:
मनोवैज्ञानिक दृष्टि:
मनोविज्ञान के अनुसार गुस्सा मानव की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है, जो असंतोष, अन्याय या अप्रत्याशित स्थिति में प्रकट होती है। परंतु हर परिस्थिति में गुस्सा व्यक्त करना बुद्धिमानी नहीं होती।
जब व्यक्ति को लगता है कि गुस्सा दिखाने से स्थिति और बिगड़ जाएगी, तो वह अपनी भावनाओं को दबा देता है।
यही भावनाओं को दबाना या गुस्से को भीतर ही समेट लेना “गुस्सा पीना” कहलाता है।
यह क्रिया व्यक्ति के धैर्य और संयम का प्रमाण भी है।
हालाँकि लंबे समय तक भावनाएँ दबाने से मानसिक तनाव बढ़ सकता है, इसलिए “गुस्सा पीना” भी सोच-समझकर करना चाहिए।
सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि:
भारतीय समाज में धैर्य, क्षमा और संयम को उच्च गुण माना गया है। “गुस्सा पीना” इसी मूल्य प्रणाली से जुड़ा है।
गुरु, माता-पिता, बड़े-बुजुर्ग या अधिकारी के सामने गुस्सा व्यक्त करना सामाजिक मर्यादा के विरुद्ध माना जाता है।
विवाह या पारिवारिक संबंधों में भी कई बार लोग विवाद से बचने के लिए गुस्सा पी जाते हैं।
यह मुहावरा यह भी बताता है कि भारतीय समाज में संयम को सम्मान मिलता है।
साहित्यिक प्रयोग:
हिन्दी साहित्य, नाटकों और कहानियों में “गुस्सा पीना” का प्रयोग अक्सर पात्रों की मनोस्थिति को दर्शाने के लिए किया गया है।
उदाहरण:
नायिका पति के अन्याय को सहते हुए “गुस्सा पीती” है।
कोई सेवक मालिक के अन्याय पर भी चुप रहता है।
ये सभी उदाहरण उस पात्र के धैर्य, विवेक या विवशता को स्पष्ट करते हैं।
व्यावहारिक जीवन में महत्व:
हमारे दैनिक जीवन में भी “गुस्सा पीना” एक उपयोगी कौशल बन चुका है। कार्यस्थल, स्कूल, कॉलेज, पारिवारिक संबंध – हर जगह हमें कभी-कभी गुस्सा दबाना पड़ता है।
कारण:
शांति बनाए रखना
संबंधों को बचाना
विवाद या झगड़े से बचना
बड़े नुकसान से बचना
इसलिए गुस्से को नियंत्रित करना और समय-समय पर “गुस्सा पीना” सीखना व्यावहारिक जीवन के लिए भी जरूरी है।
सकारात्मक और नकारात्मक पहलू:
(क) सकारात्मक पक्ष:
धैर्य और संयम का विकास होता है।
संबंध बिगड़ने से बचते हैं।
झगड़े और हिंसा कम होती है।
व्यक्ति के भीतर सहनशीलता आती है।
(ख) नकारात्मक पक्ष:
लगातार गुस्सा दबाने से मानसिक तनाव और अवसाद हो सकता है।
व्यक्ति अपनी असहमति व्यक्त नहीं कर पाता।
कभी-कभी अंदर ही अंदर गुस्सा जमा होकर विस्फोटक रूप ले सकता है।
इसलिए “गुस्सा पीना” हमेशा संतुलित और विवेकपूर्ण होना चाहिए।
समानार्थी व विपरीतार्थी भाव:
समानार्थी भाव:
क्रोध को दबाना
आत्म-संयम रखना
सहनशील होना
चुप रहना
विपरीतार्थी भाव:
गुस्से का विस्फोट करना
आक्रोश व्यक्त करना
प्रतिशोध लेना
“गुस्सा पीना” मुहावरे का वाक्य प्रयोग / Gussa Peena Muhavare Ka Vakya Prayog.
1. शिक्षक की डाँट सुनकर छात्र ने गुस्सा पी लिया।
2. बॉस की गलती होने पर भी कर्मचारी ने नौकरी बचाने के लिए गुस्सा पी लिया।
3. पड़ोसी के अपशब्द सुनकर वह गुस्सा पीकर चुप रहा।
4. दुकान में बेइज्जती होने पर भी उसने गुस्सा पी लिया।
5. अधिकारी की अनुचित बात पर उसने गुस्सा पीकर मुस्कुरा दिया।
6. पिता के कठोर शब्दों पर बेटे ने गुस्सा पी लिया।
7. बस कंडक्टर की बदतमीजी पर यात्री ने गुस्सा पी लिया।
8. गलत बिल मिलने पर ग्राहक ने गुस्सा पी लिया।
9. सहपाठी की शरारत पर लड़की ने गुस्सा पी लिया।
10. मीटिंग में झूठा आरोप लगने पर उसने गुस्सा पी लिया।
11. रास्ते में धक्का लगने पर बूढ़े ने गुस्सा पी लिया।
12. बहस में हारने पर उसने गुस्सा पी लिया।
13. घर का काम बिगड़ जाने पर माँ ने गुस्सा पी लिया।
14. बच्चे की गलती पर पिता ने गुस्सा पी लिया।
15. क्रिकेट मैच में अंपायर के गलत निर्णय पर खिलाड़ी ने गुस्सा पी लिया।
16. पत्नी की नाराज़गी सुनकर पति ने गुस्सा पी लिया।
17. गाँव वालों के ताने सुनकर किसान ने गुस्सा पी लिया।
18. बस में सीट न मिलने पर यात्री ने गुस्सा पी लिया।
19. दोस्त की तकरार पर उसने गुस्सा पी लिया।
20. बार-बार समझाने पर भी काम न होने पर शिक्षक ने गुस्सा पी लिया।
21. अधिकारी के अन्यायपूर्ण आदेश पर कर्मचारी ने गुस्सा पी लिया।
22. ग्राहक की बेअदबी पर दुकानदार ने गुस्सा पी लिया।
23. गाड़ी खराब होने पर ड्राइवर ने गुस्सा पी लिया।
24. छोटे भाई की नादानी पर बहन ने गुस्सा पी लिया।
25. परीक्षा में कम अंक आने पर छात्र ने गुस्सा पी लिया।
26. बिना वजह दोषी ठहराए जाने पर सैनिक ने गुस्सा पी लिया।
27. बार-बार टोके जाने पर भी उसने गुस्सा पी लिया।
28. पैसे वापस न मिलने पर ग्राहक ने गुस्सा पी लिया।
29. किसी के मज़ाक उड़ाने पर उसने गुस्सा पी लिया।
30. भीड़ में धक्का लगने पर युवक ने गुस्सा पी लिया।
निष्कर्ष:
“गुस्सा पीना” हिन्दी का एक अत्यंत अर्थपूर्ण और व्यावहारिक मुहावरा है। यह केवल गुस्सा दबाने की क्रिया नहीं है, बल्कि धैर्य, विवेक, सामाजिक मर्यादा और संबंधों को बनाए रखने की कला को भी दर्शाता है। आज के तनावपूर्ण जीवन में यह मुहावरा हमें आत्म-संयम का संदेश देता है।
हालाँकि, हमें यह भी समझना चाहिए कि अपनी भावनाओं को संतुलित ढंग से व्यक्त करना भी उतना ही जरूरी है। इस प्रकार, “गुस्सा पीना” संयम और विवेक का प्रतीक है, लेकिन इसे अति करने से मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ सकता है।
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