आयुर्वेद क्या है? परिभाषा और इतिहास / What Is Ayurveda In Hindi
Ayurveda Ka Kya Matlab Hota Hai / Ayurveda Kise Kahte Hai / आयुर्वेद का क्या मतलब होता है?
प्रस्तावना:
भारतीय संस्कृति और दर्शन में स्वास्थ्य को केवल रोगों की अनुपस्थिति नहीं माना गया, बल्कि यह शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आत्मिक संतुलन की स्थिति है। इसी दृष्टिकोण को सबसे व्यापक रूप से आयुर्वेद में देखा जा सकता है। आयुर्वेद केवल चिकित्सा पद्धति नहीं बल्कि जीवन जीने की संपूर्ण कला है। यह हमें बताता है कि किस प्रकार हम प्राकृतिक नियमों के अनुसार आहार, दिनचर्या, विचार और व्यवहार अपनाकर स्वस्थ रह सकते हैं।
1. आयुर्वेद की परिभाषा:
‘आयुर्वेद’ शब्द दो संस्कृत शब्दों से बना है –
आयुः (Ayus) = जीवन
वेद (Veda) = ज्ञान
अर्थात आयुर्वेद = जीवन का ज्ञान।
चरक संहिता में कहा गया है –
“हिताहितं सुखं दुःखं आयुस्तस्य हिताहितम्।
मानं च तच्च यत्रोक्तमायुर्वेद स उच्यते॥”
इसका भावार्थ है – जो शास्त्र हमें यह बताता है कि जीवन में क्या हितकर है और क्या अहितकर, क्या सुखद है और क्या दुखद, जीवन को कैसे बढ़ाया जा सकता है और कैसे उसे स्वस्थ रखा जा सकता है – वही आयुर्वेद है।
सरल शब्दों में:
आयुर्वेद वह विज्ञान है जो शरीर, इन्द्रियों, मन और आत्मा के समुचित संतुलन और समन्वय के माध्यम से स्वस्थ और दीर्घ जीवन जीने की कला सिखाता है।
2. आयुर्वेद का इतिहास:
आयुर्वेद का आरंभ वेदों के काल में हुआ। ऋग्वेद और अथर्ववेद में औषधियों, यज्ञीय उपचारों और जीवनशैली के संदर्भ मिलते हैं। आयुर्वेद को भगवान धन्वंतरि की देन माना जाता है। पारंपरिक मान्यता के अनुसार यह ज्ञान ब्रह्मा से इन्द्र, फिर अश्विनीकुमारों और उसके बाद आचार्यों को मिला।
मुख्य ग्रंथ (बृहद् त्रयी):
1. चरक संहिता – औषधियों, निदान और चिकित्सा पद्धति पर
2. सुश्रुत संहिता – शल्य चिकित्सा और शरीर रचना पर
3. अष्टांग हृदयम् – जीवनचर्या, औषध और चिकित्सा का समन्वय
इसके अतिरिक्त लघु त्रयी भी मानी जाती है – माधव निदान, शार्ङ्गधर संहिता, भावप्रकाश।
3. आयुर्वेद के मूल सिद्धांत:
(क) पंचमहाभूत सिद्धांत
संपूर्ण जगत पाँच तत्वों से बना है –
1. आकाश (Space)
2. वायु (Air)
3. अग्नि (Fire)
4. जल (Water)
5. पृथ्वी (Earth)
शरीर भी इन्हीं तत्वों से बना है और इनका संतुलन स्वास्थ्य बनाए रखता है।
(ख) त्रिदोष सिद्धांत
तीन प्रकार के दोष (जीवनी शक्तियाँ) –
1. वात (Vata) – वायु व आकाश तत्व से, गति व संचार नियंत्रित करता है।
2. पित्त (Pitta) – अग्नि व जल तत्व से, पाचन व ऊष्मा नियंत्रित करता है।
3. कफ (Kapha) – पृथ्वी व जल तत्व से, स्निग्धता, स्थिरता व बल प्रदान करता है।
इन तीनों का संतुलन ही स्वास्थ्य है, असंतुलन ही रोग।
(ग) सप्तधातु
रक्त, रस, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र – ये सात धातुएँ शरीर के पोषण व विकास के आधार हैं।
(घ) मल त्रय
मल, मूत्र, स्वेद – शरीर से अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन का नियम भी स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
(ङ) अग्नि और ओज
अग्नि – पाचन व चयापचय की मूल शक्ति।
ओज – प्रतिरोधक क्षमता और रोग प्रतिरोधक बल।
4. आयुर्वेद की आठ शाखाएँ (अष्टांग आयुर्वेद):
चरक और सुश्रुत ने आयुर्वेद को आठ मुख्य विभागों में बाँटा:
1. कायचिकित्सा (Internal Medicine) – आंतरिक रोगों की चिकित्सा।
2. शल्य चिकित्सा (Surgery) – शल्यक्रिया व ऑपरेशन।
3. शालाक्य तंत्र (ENT & Ophthalmology) – नेत्र, कान, नाक और गले के रोग।
4. कौमारभृत्य (Pediatrics) – बाल चिकित्सा।
5. भूतविद्या (Psychiatry & Spirit Healing) – मानसिक रोग।
6. अगद तंत्र (Toxicology) – विष चिकित्सा।
7. रसायन (Rejuvenation Therapy) – वृद्धावस्था रोकना व प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना।
8. वाजीकरण (Aphrodisiac Therapy) – प्रजनन क्षमता व यौन स्वास्थ्य।
5. आयुर्वेद में निदान पद्धति:
आयुर्वेद में रोग की पहचान त्रिविध परिक्षा (दर्शन, स्पर्शन, प्रश्न) व दश विध परिक्षा के माध्यम से की जाती है। नाड़ी परीक्षण भी प्रमुख विधि है।
6. आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति:
(क) निवारणात्मक (Preventive)
स्वस्थ व्यक्ति को स्वस्थ बनाए रखने के लिए आहार, दिनचर्या, ऋतुचर्या, योग, ध्यान आदि।
(ख) उपचारात्मक (Curative)
रोगी व्यक्ति के दोष संतुलन के लिए पंचकर्म, औषधि, आहार-विहार।
(ग) पुनर्वासात्मक (Rehabilitative)
रसायन और वाजीकरण के द्वारा बल, आयु और ओज की वृद्धि।
7. पंचकर्म चिकित्सा
पंचकर्म शरीर को अंदर से शुद्ध करता है:
1. वमन (उल्टी कराना)
2. विरेचन (पाचन तंत्र शुद्धि)
3. बस्ती (एनिमा)
4. नस्य (नाक द्वारा औषधि)
5. रक्तमोक्षण (रक्त शुद्धि)
8. आहार और आयुर्वेद:
आयुर्वेद में आहार को ‘महाभैषज्य’ कहा गया है। सात्विक, ताजे, ऋतु अनुसार भोजन को सर्वोत्तम माना गया है। भोजन के छह रस (मीठा, खट्टा, नमकीन, कड़वा, तीखा, कसैला) संतुलन में लेने चाहिए।
9. दिनचर्या, ऋतुचर्या और योग:
आयुर्वेद सिर्फ औषधियों तक सीमित नहीं है। यह बताता है कि हमें सुबह कब उठना चाहिए, व्यायाम कैसे करना चाहिए, ऋतु के अनुसार आहार और दिनचर्या कैसे बदलनी चाहिए। योग और ध्यान भी शरीर और मन को संतुलित करने के महत्वपूर्ण साधन बताए गए हैं।
10. आयुर्वेद और मानसिक स्वास्थ्य:
भूतविद्या व सात्विक आहार-विहार के माध्यम से मानसिक रोगों को ठीक करने पर जोर दिया गया है। सकारात्मक विचार, ध्यान, प्राणायाम और सात्त्विक भोजन मन को संतुलित करते हैं।
11. आधुनिक संदर्भ में आयुर्वेद:
आज आयुर्वेद केवल भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में लोकप्रिय है। हर्बल औषधियाँ, डिटॉक्स थेरेपी, योग, ध्यान आदि का समावेश आधुनिक चिकित्सा में भी किया जा रहा है। WHO ने पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को महत्व दिया है और भारत सरकार ने AYUSH मंत्रालय के अंतर्गत आयुर्वेद को बढ़ावा दिया है।
12. आयुर्वेद के लाभ:
जीवनशैली में सुधार
रोगों की जड़ पर उपचार
दुष्प्रभाव कम
प्राकृतिक और स्थायी चिकित्सा
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना
13. चुनौतियाँ:
शुद्ध औषधियों की उपलब्धता
वैज्ञानिक परीक्षणों की आवश्यकता
गलत प्रचार और नकली उत्पाद
14. निष्कर्ष:
आयुर्वेद केवल दवाओं या जड़ी-बूटियों का विज्ञान नहीं है, यह जीवन जीने की एक समग्र पद्धति है। यह व्यक्ति को प्रकृति के साथ जोड़कर उसका स्वास्थ्य बनाए रखता है। आज की तेज़ रफ़्तार जीवनशैली में जब तनाव, प्रदूषण और अनियमित आहार हमारी स्वास्थ्य समस्याओं की जड़ हैं, तब आयुर्वेद हमें संतुलन, संयम और प्रकृति के अनुरूप जीवन जीने का संदेश देता है।
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