“सूर्यकन्या छठी मईया: भक्ति, आस्था और उजास की अमर कथा” / Chhathi Maiya Ki Kahani

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  Chhath Ki Kahani / Chhath Kyu Manate Hai / छठ महापर्व की कहानी ।   Chhathi Maiya Ki Kahani प्रस्तावना: कार्तिक माह की ठंडी हवाएँ बह रही थीं। घाटों पर मिट्टी के दीये जल चुके थे। गन्ने के तोरण, केले के पत्ते, और जल से भरे पीतल के कलश की कतारें गंगा किनारे एक अद्भुत दृश्य बना रही थीं। ढोल-नगाड़ों की ध्वनि और “छठी मईया के जयकारे” से पूरा आकाश गूंज रहा था। यह दृश्य केवल एक पर्व का नहीं, बल्कि आस्था, संयम और सूर्योपासना की एक शाश्वत परंपरा का था, छठ पर्व। लेकिन इस कथा की जड़ें बहुत गहरी हैं। यह केवल पूजा नहीं, बल्कि मानव और प्रकृति, सूर्य और जीवन, भक्ति और मातृत्व के संगम की कहानी है, एक ऐसी कहानी जो युगों से चलती आई है और आज भी लाखों दिलों में विश्वास का दीप जलाती है। अध्याय 1: छठी मईया का उद्गम कहा जाता है कि छठी मईया, जिन्हें उषा या षष्ठी देवी के नाम से भी जाना जाता है, सूर्यदेव की बहन हैं। वे प्रकृति की वह दिव्य शक्ति हैं जो जीवन, संतान और स्वास्थ्य की रक्षा करती हैं। जब सृष्टि का आरंभ हुआ, तब सूर्यदेव ने पृथ्वी को प्रकाश दिया। लेकिन जब अंधकार और असंतुलन बढ़ा, तब सूर्य ने अपनी...

“कपकपी छूटना” मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग / Kapkapi Chhutna Meaning In Hindi


Kapkapi Chutna Muhavare Ka Arth Aur Vakya Prayog / कपकपी छूटना मुहावरे का क्या अर्थ होता है?

 

“कपकपी छूटना” मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग / Kapkapi Chhutna Meaning In Hindi
Kapkapi Chutna


मुहावरा- "कपकपी छूटना"।

(Muhavara- Kapkapi Chutna)


अर्थ- ठंड, तनाव, भय या घबराहट के कारण शरीर

 कांपने लगना।

(Arth/Meaning in Hindi- Thand, Tanav, Bhay Ya Ghabrahat Ke Karan Sharir Kapne Lagna)



“ कंपकंपी छूटना” मुहावरे का अर्थ/व्याख्या इस प्रकार है-


परिचय:

हिन्दी भाषा की समृद्धता में मुहावरों का विशेष स्थान है। ये भाषा को भावपूर्ण, सजीव और अभिव्यक्तिपूर्ण बनाते हैं। "कपकपी छूटना" एक ऐसा ही लोकप्रिय मुहावरा है, जिसका प्रयोग भय, सर्दी या अति उत्तेजना की स्थिति को दर्शाने के लिए किया जाता है। यह मुहावरा न केवल किसी व्यक्ति की शारीरिक अवस्था को व्यक्त करता है, बल्कि उसकी मानसिक दशा का भी चित्रण करता है।

अर्थ:

"कपकपी छूटना" मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है – किसी के शरीर में इतनी तीव्र प्रतिक्रिया होना कि वह काँपने लगे। इसका भावार्थ यह है कि कोई व्यक्ति अत्यधिक भय, ठंड, तनाव या घबराहट के कारण काँपने लगे। इस मुहावरे का प्रयोग उस स्थिति को दर्शाने के लिए किया जाता है जब व्यक्ति पर ऐसी मानसिक या शारीरिक स्थिति आ जाए कि वह स्वयं को नियंत्रित न कर पाए और उसका शरीर थरथराने लगे।

प्रयोग के संदर्भ:

इस मुहावरे का प्रयोग कई प्रकार की परिस्थितियों में किया जा सकता है, जैसे:

1. भय के कारण:

जब कोई व्यक्ति किसी भयानक दृश्य को देखता है, या अचानक किसी डरावनी स्थिति का सामना करता है, तो उसकी स्थिति ऐसी हो जाती है कि वह काँपने लगता है। 

जैसे –

जैसे ही उसने जंगल में शेर की आवाज़ सुनी, उसकी तो कपकपी छूट गई।

2. ठंड के कारण:

कड़ाके की ठंड में जब शरीर का तापमान गिरता है और शरीर काँपने लगता है, तब भी यह मुहावरा उपयुक्त होता है। जैसे –

सुबह-सुबह इतनी ठंड थी कि बाहर निकलते ही कपकपी छूट गई।

3. तनाव या घबराहट के कारण:

परीक्षा में परिणाम की प्रतीक्षा करते समय, या जब कोई गंभीर निर्णय लेना हो, तब भी व्यक्ति की ऐसी हालत हो जाती है कि वह काँपने लगे। जैसे –

इंटरव्यू देने गया तो बॉस को देखकर ही कपकपी छूट गई।

व्याख्या:

इस मुहावरे में "कपकपी" शब्द शरीर के काँपने की अवस्था को दर्शाता है, जो अनियंत्रित होती है। "छूटना" यहाँ उस स्थिति की अचानकता और तीव्रता को दर्शाता है। जब ये दोनों शब्द मिलते हैं, तो यह स्थिति उस भाव को व्यक्त करती है जब किसी व्यक्ति पर कोई भावनात्मक या शारीरिक प्रभाव इतनी तीव्रता से पड़ता है कि उसका शरीर प्रतिक्रिया करने लगता है।

मानव शरीर में भय, सर्दी या तनाव की स्थिति में स्वाभाविक रूप से एक प्रतिक्रिया होती है – हृदय की गति तेज हो जाती है, रक्तचाप बढ़ता है और मांसपेशियाँ सिकुड़ने लगती हैं। इन सबके परिणामस्वरूप शरीर काँपने लगता है। यही स्थिति इस मुहावरे में सजीव रूप में वर्णित होती है।

साहित्यिक महत्व:

"कपकपी छूटना" जैसे मुहावरे साहित्य में पात्रों की मन:स्थिति और वातावरण को सजीव बनाने में अत्यंत उपयोगी सिद्ध होते हैं। जब लेखक या कवि किसी चरित्र की स्थिति को बिना सीधे कहे व्यक्त करना चाहता है, तो ऐसे मुहावरों का प्रयोग करता है। इससे पाठक स्वतः उस स्थिति की कल्पना कर लेता है और भाषा में चित्रात्मकता आ जाती है।

उदाहरण के लिए, अगर लिखा जाए –

"अचानक बिजली चमकी और गगनगर्जना हुई। बालक ने आँखें मूँद लीं, उसके शरीर में कपकपी छूट गई।"

इस वाक्य से तुरंत पाठक को उस बच्चे की भयभीत अवस्था का आभास हो जाता है।

समाज में प्रचलन:

इस मुहावरे का प्रयोग केवल साहित्य तक सीमित नहीं है, बल्कि आम बोलचाल की भाषा में भी यह अत्यंत सामान्य है। लोग अपने अनुभवों को व्यक्त करने के लिए इसका सहज रूप से प्रयोग करते हैं। यह भावनाओं को प्रभावी ढंग से प्रकट करने का एक सरल तरीका बन गया है।

निष्कर्ष:

"कपकपी छूटना" मुहावरा हिन्दी भाषा की अभिव्यक्तिपूर्ण विशेषताओं का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह न केवल भावनात्मक स्थितियों को प्रभावशाली ढंग से प्रकट करता है, बल्कि पाठक या श्रोता को उस अनुभूति से जोड़ता भी है। चाहे भय हो, ठंड हो या मानसिक तनाव – यह मुहावरा हर ऐसी स्थिति में प्रासंगिक और प्रभावशाली है। हिन्दी भाषा के सौंदर्य और प्रभावशीलता को समझने के लिए ऐसे मुहावरों का अध्ययन आवश्यक है।


"कपकपी छूटना" मुहावरे का वाक्य प्रयोग / KapKapi Chhutna Muhavare Ka Arth Aur Vakya Prayog. 


1. भूतिया कहानी सुनते-सुनते उसकी तो कपकपी छूट गई।

2. ठंड इतनी थी कि रजाई में भी कपकपी छूट रही थी।

3. परीक्षा का पेपर देखकर मेरी तो कपकपी छूट गई।

4. जैसे ही साप सामने आया, उसकी कपकपी छूट गई।

5. अंधेरे कमरे में अजीब आवाज़ें सुनकर बच्चों की कपकपी छूट गई।

6. पुलिस की सायरन सुनते ही चोरों की कपकपी छूट गई।

7. इंटरव्यू के दौरान बॉस के सवाल सुनकर उसकी कपकपी छूट गई।

8. डॉक्टर की बात सुनकर मरीज की कपकपी छूट गई।

9. ट्रेन की पटरी पर खड़ा आदमी अचानक इंजन देखकर कांपने लगा, उसकी कपकपी छूट गई।

10. जब मम्मी ने फोन पर डांटा, तो मेरी कपकपी छूट गई।

11. रिजल्ट आने से पहले ही उसकी कपकपी छूट गई थी।

12. बर्फीले पानी में पैर डालते ही कपकपी छूट गई।

13. अचानक बिजली चली गई और दरवाज़ा खुद-ब-खुद बंद हुआ – सबकी कपकपी छूट गई।

14. कोर्ट में सज़ा सुनकर अपराधी की कपकपी छूट गई।

15. धमाका सुनकर पास खड़े लोगों की कपकपी छूट गई।


मुहावरे "कपकपी छूटना" पर आधारित एक छोटी कहानी: “रहस्यमयी कोठरी”


गर्मियों की छुट्टियों में रवि अपने दादी-नानी के गाँव गया था। गाँव की मिट्टी, तालाब और आम के बाग उसे हमेशा बहुत अच्छे लगते थे। इस बार उसका चचेरा भाई अर्जुन भी उसके साथ था। दोनों दिन भर गाँव में दौड़ते-भागते, आम तोड़ते और शाम को नानी से कहानियाँ सुनते।

एक दिन दोपहर को गाँव के कुछ लड़कों ने बताया कि हवेली के पास वाली पुरानी कोठरी में कोई आत्मा रहती है। रात को वहाँ से अजीब-अजीब आवाजें आती हैं। सब लड़कों ने शर्त लगाई कि जो सबसे बहादुर होगा, वो रात को उस कोठरी तक जाकर आएगा।

रवि को लगा, ये तो अच्छा मौका है सबको दिखाने का कि वह डरता नहीं। अर्जुन को पहले ही शक था, उसने मना भी किया – "रात को वहाँ मत जाना, दादी कहती हैं वो जगह मनहूस है।" मगर रवि नहीं माना।

रात को जब सब सो गए, तो रवि चुपके से उठकर टॉर्च और मोबाइल लेकर निकल पड़ा। हवेली की ओर बढ़ते हुए ही उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। चारों ओर सन्नाटा था, बस झींगुरों की आवाज़ और कभी-कभी कुत्तों की भौंकने की गूँज। जैसे ही वह कोठरी के पास पहुँचा, टॉर्च की रौशनी मद्धम पड़ने लगी। अचानक हवा का एक झोंका आया और दरवाजा खर्रर्र की आवाज़ के साथ अपने आप खुल गया।

रवि का गला सूख गया। उसने मोबाइल की फ्लैश जलाने की कोशिश की, लेकिन बैटरी खत्म हो चुकी थी। तभी अंदर से किसी के हँसने की धीमी-सी आवाज़ आई – ही ही ही...

रवि की तो कपकपी छूट गई। उसके पैर जैसे ज़मीन से चिपक गए। दिल की धड़कन इतनी तेज़ हो गई कि उसे खुद ही सुनाई देने लगी। उसने पलटकर भागना चाहा लेकिन डर से उसके घुटनों में जान ही नहीं थी। तभी अचानक किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा।

"रवि!" एक जानी-पहचानी आवाज़ आई। पीछे मुड़कर देखा तो अर्जुन था।

"पागल हो गया है क्या? मैंने कहा था मत आ!" अर्जुन ने उसे खींचकर बाहर निकाला।

बाद में पता चला कि वो आवाज़ किसी बूढ़े भिखारी की थी जो वहाँ बारिश से बचने के लिए ठहरा था। लेकिन उस रात रवि ने जो अनुभव किया, वो जिंदगी भर नहीं भूला।

सीख:

बहादुरी दिखाना अच्छी बात है, लेकिन बिना सोचे-समझे खतरे में पड़ना मूर्खता है। और कभी-कभी डर का अहसास इतना गहरा होता है कि कपकपी छूटना जैसी बात सच लगने लगती है।



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