“कब्र में पाँव लटकाना” मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग / Kabra Me Paon Latkana Meaning In Hindi

Kabra Me Panv Latkana Muhavare Ka Arth Aur Vakya Prayog / कब्र में पाँव लटकाना मुहावरे का अर्थ क्या होता है? मुहावरा- “कब्र में पाँव लटकाना”। ( Muhavara- Kabra Me Panv Latkana ) अर्थ- अत्यधिक उम्र का होना / मृत्यु के निकट होना । ( Arth/Meaning in Hindi- Atyadhik Umra Ka H ona / Mrityu Ke Nikat Hona ) “कब्र में पाँव लटकाना” मुहावरे का अर्थ/व्याख्या इस प्रकार है- परिचय: हिंदी भाषा में मुहावरों का विशेष महत्व है। ये न केवल भाषा को रोचक और प्रभावशाली बनाते हैं, बल्कि भावों की गहराई को भी संक्षेप में प्रकट करते हैं। ऐसा ही एक प्रसिद्ध मुहावरा है — "कब्र में पाँव लटकाना"। यह मुहावरा आमतौर पर बुज़ुर्ग या बहुत वृद्ध लोगों के संदर्भ में प्रयोग होता है, जिनका जीवन अंत के समीप प्रतीत होता है। अर्थ: "कब्र में पाँव लटकाना" का अर्थ होता है बहुत अधिक वृद्ध होना या इतना बूढ़ा हो जाना कि मृत्यु निकट हो। यह मुहावरा उस अवस्था को दर्शाता है जब व्यक्ति शारीरिक रूप से बेहद दुर्बल हो जाता है और उसका जीवन धीरे-धीरे मृत्यु की ओर बढ़ने लगता है। इसका सीधा संबंध उम्र के अंतिम पड़ाव से है। यह म...

“अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक” मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग / Achha Swami Achha Sevak Meaning In Hindi


Achha Swani Achha Sevak Muhavare Ka Arth Aur Vakya Prayog / “अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक” मुहावरे का क्या अर्थ होता है?

 

“अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक” मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग / Achha Swami Achha Sevak Meaning In Hindi
अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक


मुहावरा- “अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक”।

(Muhavara- Achha Swami Achha Sevak)


अर्थ- यदि स्वामी अच्छा और न्यायप्रिय हो, तो उसके सेवक भी अच्छे और कर्तव्यनिष्ठ होते हैं।

(Arth/Meaning in Hindi- Yadi Swami Achha Aur Nyay Priya Ho To Uske Sevak Bhi Achhe Aur Kartvyanishth Hote Hai)




“अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक” मुहावरे का अर्थ/व्याख्या इस प्रकार है-


“अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक” यह एक प्रसिद्ध हिंदी मुहावरा है, जिसका अर्थ है कि यदि स्वामी (नेता, मालिक, या मार्गदर्शक) अच्छा और न्यायप्रिय हो, तो उसके सेवक (अनुयायी, कर्मचारी, या शिष्य) भी अच्छे और कर्तव्यनिष्ठ होते हैं। इस मुहावरे का गहरा सामाजिक और नैतिक महत्व है, जो नेतृत्व और अनुयायियों के बीच संबंधों पर प्रकाश डालता है।


मुहावरे का अर्थ:

इस मुहावरे का मुख्य संदेश यह है कि नेतृत्व का सीधा प्रभाव उसके अधीनस्थों पर पड़ता है। यदि स्वामी ईमानदार, दयालु, और न्यायसंगत होगा, तो उसके सेवक भी उसी गुणों को अपनाएंगे और निष्ठापूर्वक अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे। इसके विपरीत, यदि स्वामी स्वार्थी, अन्यायी या भ्रष्ट होगा, तो उसके अनुयायी भी उसी राह पर चलने लगेंगे।


व्याख्या:

मानव समाज में नेतृत्व की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। परिवार से लेकर राष्ट्र तक, हर स्तर पर नेतृत्व ही दिशा तय करता है। एक अच्छा स्वामी अपने सेवकों के साथ सम्मान और करुणा से व्यवहार करता है, जिससे सेवक भी स्वामी के प्रति वफादार और मेहनती बनते हैं।

उदाहरण के लिए, रामायण में भगवान राम एक आदर्श राजा और स्वामी के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं। उनकी प्रजा उनसे अटूट प्रेम करती थी क्योंकि वे न्यायप्रिय, सत्यनिष्ठ और दयालु थे। उनके सेवक हनुमान जी ने निःस्वार्थ भाव से उनकी सेवा की और असंभव कार्यों को भी संभव बनाया।

दूसरी ओर, महाभारत में दुर्योधन एक गलत स्वामी का उदाहरण है, जो अहंकार और अन्याय के मार्ग पर चला। उसके अनुयायी शकुनि और कर्ण ने भी उसी राह को अपनाया, जिससे अंततः कुरुक्षेत्र का विनाशकारी युद्ध हुआ।


यह मुहावरा आधुनिक जीवन में भी उतना ही प्रासंगिक है।


*व्यापार में — यदि एक कंपनी का मालिक ईमानदार और कर्मचारियों का सम्मान करने वाला हो, तो कर्मचारी भी मेहनत और निष्ठा से काम करेंगे, जिससे कंपनी प्रगति करेगी।

*राजनीति में — एक सच्चे और ईमानदार नेता के पीछे जनता भी खड़ी रहती है, जबकि भ्रष्ट नेताओं के अधीन जनता असंतोष से भर जाती है।

*शिक्षा में — एक अच्छा शिक्षक अपने विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


"अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक" मुहावरे का वाक्य प्रयोग / Achha Swami Achha Sevak Muhavare Ka Vakya Prayog. 


1. राजा हरिश्चंद्र ने सत्य और धर्म का पालन किया, इसलिए उनके सेवक भी निष्ठावान रहे — सही ही कहा गया है, "अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक"।

2. यदि शिक्षक खुद मेहनती और ईमानदार हो, तो विद्यार्थी भी अच्छा प्रदर्शन करते हैं, अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक वाली बात चरितार्थ होती है।

3. कंपनी का मालिक अपने कर्मचारियों के साथ अच्छा व्यवहार करता है, इसलिए उसकी पूरी टीम मेहनत से काम करती है — अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक।

4. एक अच्छा नेता अपनी जनता के सुख-दुख का ख्याल रखता है, तभी जनता भी उसके पीछे मजबूती से खड़ी रहती है — अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक।

5. गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन को महान धनुर्धर बनाया, क्योंकि गुरु अच्छे थे, इसलिए शिष्य भी श्रेष्ठ बना — अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक।

6. माता-पिता अच्छे संस्कार देते हैं, तो बच्चे भी अच्छे आचरण वाले बनते हैं — अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक।

7. एक अच्छा कप्तान अपनी टीम को सही दिशा दिखाता है, इसलिए पूरी टीम भी अच्छा प्रदर्शन करती है — अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक।

8. यदि राजा न्यायप्रिय और दयालु हो, तो उसकी प्रजा भी सुखी और शांतिप्रिय होती है — अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक।

9. जब मालिक अपने नौकरों का सम्मान करता है, तो वे भी पूरी निष्ठा से काम करते हैं — अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक।

10. शिवाजी महाराज एक वीर और न्यायप्रिय राजा थे, इसलिए उनके सैनिक भी अद्वितीय वीरता दिखाते थे — अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक।

11. एक अच्छे प्रधानाचार्य के मार्गदर्शन में स्कूल का हर शिक्षक और छात्र अनुशासन में रहता है — अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक।

12. महात्मा गांधी खुद सादगी और अहिंसा के मार्ग पर चले, इसलिए उनके अनुयायियों ने भी वही राह अपनाई — अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक।

13. जिस घर का मुखिया मेहनती और ईमानदार होता है, वह परिवार भी उसी राह पर चलता है — अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक।

14. डॉक्टर अगर मरीजों के साथ दयालुता से पेश आए, तो नर्स और अन्य स्टाफ भी सेवा भाव से काम करते हैं — अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक।

15. भगवान राम के जैसा आदर्श राजा मिलने पर उनकी पूरी प्रजा ने उन्हें भगवान की तरह पूज्य माना — अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक।


निष्कर्ष:

"अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक" एक प्रेरणादायक मुहावरा है, जो नेतृत्व और अनुयायियों के संबंधों पर गहन प्रकाश डालता है। यह हमें सिखाता है कि नेतृत्व सिर्फ अधिकार का नाम नहीं है, बल्कि उदाहरण प्रस्तुत करने और दूसरों को प्रेरित करने की जिम्मेदारी है। यदि हम अच्छे मार्गदर्शक बनेंगे, तो हमारे अनुयायी भी अच्छे ही बनेंगे — चाहे वह परिवार हो, समाज हो, या कोई संगठन।



“अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक” मुहावरे पर एक छोटी सी कहानी-


एक गाँव में एक राजा राज करता था, जिसका नाम वीरसिंह था। वह न्यायप्रिय, दयालु और प्रजा की भलाई के लिए हमेशा तत्पर रहता था। राजा का मंत्र था — "राजा का धर्म है प्रजा का भरण-पोषण और रक्षा करना।"

उसके राज्य का सेनापति रघु, राजा का सबसे भरोसेमंद सेवक था। राजा ने रघु को हमेशा ईमानदारी, निष्ठा, और साहस का पाठ सिखाया था। रघु ने राजा से सीखा था कि सेवा का अर्थ केवल आदेश मानना नहीं, बल्कि अपने स्वामी के आदर्शों पर चलना भी है।

एक बार पड़ोसी राज्य के राजा ने धोखे से हमला कर दिया। राजा वीरसिंह घायल हो गए, लेकिन रघु ने हार नहीं मानी। वह सेना को संभालता रहा और राजा की रक्षा करता रहा। रघु ने न केवल बहादुरी से दुश्मनों को हराया, बल्कि घायल राजा को सुरक्षित महल तक भी पहुँचाया।

जब राजा स्वस्थ हुए, तो उन्होंने रघु को गले लगाकर कहा, "अच्छा स्वामी, अच्छा सेवक" — जैसे मैं न्याय और धर्म के मार्ग पर चला, वैसे ही तुमने भी निष्ठा और वीरता का परिचय दिया।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जब स्वामी अपने गुणों से प्रेरणा देता है, तो सेवक भी उसी मार्ग पर चलकर महान बनता है।


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