“गोबर गणेश होना” मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग / Gobar Ganesh Meaning In Hindi

Gobar Ganesh Hona Muhavare Ka Arth Aur Vakya Prayog / गोबर गणेश होना मुहावरे का क्या मतलब होता है? मुहावरा- “गोबर गणेश होना”। (Muhavara- Gobar Ganesh Hona) अर्थ- मूर्ख होना / बेवकूफ़ होना / बुद्धहीन या नासमझ होना । (Arth/Meaning in Hindi- Murkh Hona / Bewkuf Hona / Buddhhin Hona) “गोबर गणेश होना” मुहावरे का अर्थ/व्याख्या इस प्रकार है- परिचय: हिंदी भाषा में मुहावरों का विशेष स्थान है। मुहावरे भाषा को केवल रोचक ही नहीं बनाते, बल्कि कम शब्दों में गहरी बात कहने की शक्ति भी देते हैं। ऐसा ही एक प्रचलित और अर्थपूर्ण मुहावरा है — ‘गोबर गणेश होना’। यह मुहावरा प्रायः बोलचाल की भाषा में व्यंग्यात्मक रूप में प्रयोग किया जाता है और किसी व्यक्ति की अज्ञानता, मूर्खता या नासमझी को दर्शाने के लिए प्रयुक्त होता है। मुहावरे का शाब्दिक अर्थ: ‘गोबर गणेश’ शब्द दो भागों से मिलकर बना है- गोबर और गणेश। गोबर से आशय है गाय-भैंस का मल, जो ग्रामीण जीवन में ईंधन, खाद आदि के रूप में उपयोग होता है। गणेश हिंदू धर्म में बुद्धि, विवेक और शुभ आरंभ के देवता माने जाते हैं। शाब्दिक रूप से देखा जाए तो ‘गोबर गणेश’ का अर्थ अत्य...

“अंधी देवियां, लूले पुजारी” मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग / Andhi Deviyan Lule Pujari Meaning In Hindi


Andhi Deviya Lule Pujari Muhavare Ka Arth Aur Vakya Prayog / अंधी देवियाँ, लूले पुजारी मुहावरे का अर्थ क्या होता है?



परिचय

भारतीय हिंदी साहित्य एवं भाषा में मुहावरे और लोकोक्तियाँ विशेष स्थान रखते हैं। ये वाक्यांश किसी समाज, संस्कृति, और मान्यताओं का संक्षिप्त लेकिन प्रभावी चित्रण करते हैं। मुहावरों का प्रयोग भाषा को अधिक प्रभावी, सारगर्भित और रोचक बनाने के लिए किया जाता है।


"अंधी देवियां, लूले पुजारी" भी ऐसा ही एक मुहावरा है, जो सामाजिक व्यवस्था, विडंबना और असंगति को इंगित करता है। यह मुहावरा उन स्थितियों के लिए प्रयुक्त होता है जहाँ व्यवस्था या तो दोषपूर्ण होती है या फिर उसका संचालन करने वाले अयोग्य होते हैं।


अर्थ

"अंधी देवियां, लूले पुजारी" मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है:


अंधी देवियां – ऐसी देवियां या मूर्तियाँ जो देख नहीं सकतीं।

लूले पुजारी – ऐसे पुजारी जो ठीक से पूजा-अर्चना करने में असमर्थ हैं।


इसका भावार्थ यह है कि जब किसी कार्य को निष्पादित करने के लिए अयोग्य और अक्षम लोग नियुक्त कर दिए जाते हैं, तो व्यवस्था पूरी तरह से दिशाहीन हो जाती है। यह उन परिस्थितियों को दर्शाता है जहाँ नेतृत्व अक्षम होता है और निर्णय लेने वाली संस्थाएँ स्वयं संकटग्रस्त होती हैं।


व्याख्या

यह मुहावरा समाज में व्याप्त विसंगतियों और प्रशासनिक असफलताओं पर कटाक्ष करता है। कई बार हम देखते हैं कि किसी संस्था या संगठन में वे लोग नेतृत्व कर रहे होते हैं जो स्वयं उस कार्य के लिए उपयुक्त नहीं होते। परिणामस्वरूप, वह संस्था या व्यवस्था अपने मूल उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पाती।


१. सामाजिक परिप्रेक्ष्य

समाज में कई बार ऐसे नियम और प्रथाएँ स्थापित हो जाती हैं, जिनका कोई औचित्य नहीं होता, फिर भी वे जारी रहती हैं। उदाहरण के लिए, कुछ धार्मिक अंधविश्वासों में लोगों को बिना सोचे-समझे भाग लेते देखा जाता है। ऐसे में, यदि मार्गदर्शन करने वाले स्वयं अंधविश्वास के शिकार हों, तो आम जनमानस भी भ्रमित हो जाता है।


२. राजनीतिक परिप्रेक्ष्य

राजनीति में भी यह मुहावरा सटीक बैठता है। जब देश या राज्य की बागडोर ऐसे नेताओं के हाथों में आ जाती है जो न तो जनसमस्याओं को समझते हैं और न ही उनके समाधान में रुचि रखते हैं, तो संपूर्ण व्यवस्था चरमरा जाती है। यह स्थिति ठीक वैसे ही है जैसे ‘अंधी देवियों’ की पूजा ‘लूले पुजारियों’ द्वारा की जा रही हो।


३. प्रशासनिक परिप्रेक्ष्य

सरकारी तंत्र में कई बार ऐसे अधिकारी या कर्मचारी नियुक्त कर दिए जाते हैं, जिन्हें अपने कार्य की पूरी समझ नहीं होती। वे गलत निर्णय लेते हैं और नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पाते। इससे जनता को ही नुकसान होता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी शिक्षा विभाग का प्रमुख स्वयं शिक्षा के क्षेत्र में अयोग्य हो, तो वह छात्रों के भविष्य को सही दिशा नहीं दे सकता।


४. धार्मिक और आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य

इस मुहावरे को धार्मिक दृष्टिकोण से भी देखा जा सकता है। जब धार्मिक संस्थानों का संचालन ऐसे लोगों के हाथों में चला जाता है, जो केवल व्यक्तिगत स्वार्थ में लिप्त होते हैं, तब धर्म का मूल उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है। यह स्थिति अंधे भक्तों और अयोग्य गुरुओं की एक शृंखला बना देती है, जिससे समाज को कोई वास्तविक लाभ नहीं होता।


५. शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में

शिक्षा व्यवस्था में भी यह मुहावरा लागू होता है। यदि विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में योग्य शिक्षकों के स्थान पर अयोग्य शिक्षक आ जाते हैं, तो ज्ञान का स्तर गिर जाता है। एक अज्ञानी शिक्षक अपने विद्यार्थियों को सही दिशा नहीं दिखा सकता, जिससे उनकी शिक्षा अधूरी रह जाती है।


मुहावरे का प्रयोग


"अंधी देवियां, लूले पुजारी" मुहावरे का प्रयोग विभिन्न संदर्भों में किया जाता है। उदाहरणस्वरूप –


1. राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में – "इस देश की राजनीति का क्या हाल हो गया है! नीतियाँ बनाने वाले खुद भ्रष्ट हैं, और उन्हें लागू करने वाले अधिकारी अयोग्य। पूरी व्यवस्था 'अंधी देवियां, लूले पुजारी' जैसी हो गई है।"


2. शिक्षा के संदर्भ में – "जब विद्यालयों में शिक्षकों की भर्ती में केवल सिफारिशें चलेंगी और योग्य उम्मीदवारों को दरकिनार कर दिया जाएगा, तब शिक्षा व्यवस्था का पतन निश्चित है। यह पूरी स्थिति 'अंधी देवियां, लूले पुजारी' के समान है।"


3. धार्मिक संदर्भ में – "आजकल कुछ लोग धर्म को व्यवसाय बना चुके हैं। स्वयं को धार्मिक गुरु कहने वाले ही सही मार्ग से भटके हुए हैं। यह 'अंधी देवियां, लूले पुजारी' जैसी स्थिति है।"


ऐतिहासिक और साहित्यिक संदर्भ


यह मुहावरा केवल समकालीन समाज पर ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक घटनाओं पर भी लागू होता है। इतिहास में कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं, जहाँ शासन ऐसे लोगों के हाथ में रहा, जिन्होंने अपने अज्ञान या अक्षमता के कारण पूरे समाज को कठिनाइयों में डाल दिया।

मुगल साम्राज्य के अंतिम दिनों में कमजोर शासकों की भूमिका को इस मुहावरे से समझा जा सकता है।

18वीं और 19वीं सदी में भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों के कारण सामाजिक विकास अवरुद्ध हो गया था, जिसे सुधारकों ने दूर करने का प्रयास किया।



"अंधी देवियां, लूले पुजारी" मुहावरे का वाक्य प्रयोग / Andhi Deviya Lule Pujari Muhavare Ka Vakya Prayog. 


1. हमारी शिक्षा प्रणाली में योग्य शिक्षकों की कमी है, यह पूरी व्यवस्था "अंधी देवियां, लूले पुजारी" जैसी हो गई है।


2. जब खुद नेता ही भ्रष्ट हों, तो देश का विकास रुक जाएगा, यही तो "अंधी देवियां, लूले पुजारी" वाली स्थिति है।


3. न्यायपालिका में अगर अयोग्य लोग बैठेंगे, तो न्याय कैसे मिलेगा? "अंधी देवियां, लूले पुजारी" का उदाहरण यही है।


4. कंपनी का मालिक खुद व्यापारिक नीतियों से अनभिज्ञ है और कर्मचारी भी कामचोर, पूरी व्यवस्था "अंधी देवियां, लूले पुजारी" बन चुकी है।


5. धार्मिक स्थलों पर जब अयोग्य लोग मार्गदर्शन देने लगें, तो समाज भटक जाता है, यह "अंधी देवियां, लूले पुजारी" जैसी स्थिति है।


6. अस्पताल में डॉक्टरों की भारी कमी है और जो हैं, वे इलाज करने में असमर्थ, यह तो "अंधी देवियां, लूले पुजारी" जैसा हाल है।


7. जब खुद माता-पिता ही बच्चों को गलत राह दिखाएँ, तो परिवार में "अंधी देवियां, लूले पुजारी" जैसी स्थिति बन जाती है।


8. स्कूल का प्रिंसिपल ही अनुशासनहीन है, तो बच्चों से क्या उम्मीद करें? यही तो "अंधी देवियां, लूले पुजारी" है।


9. गाँव में सरपंच अनपढ़ और उसके सलाहकार भी नासमझ हैं, प्रशासन का हाल "अंधी देवियां, लूले पुजारी" जैसा ही होगा।


10. सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार चरम पर है, अधिकारी कामचोर हैं, पूरी व्यवस्था "अंधी देवियां, लूले पुजारी" हो चुकी है।


11. विज्ञान के नाम पर झूठे दावे करने वालों को बढ़ावा देना "अंधी देवियां, लूले पुजारी" वाली बात है।


12. जब कोई कलाकार बिना प्रतिभा के प्रसिद्ध हो जाए, तो इसे "अंधी देवियां, लूले पुजारी" ही कहेंगे।


13. मीडिया में जब सच्चाई की जगह झूठा प्रचार होने लगे, तो यह "अंधी देवियां, लूले पुजारी" जैसी स्थिति होती है।


14. सेना में अयोग्य लोगों की भर्ती होने लगे, तो सुरक्षा व्यवस्था "अंधी देवियां, लूले पुजारी" जैसी हो जाएगी।


15. कचरे की सफाई करने वाले ही अगर गंदगी फैलाएँ, तो यह "अंधी देवियां, लूले पुजारी" वाली बात होगी।


16. परीक्षा में नकल करने वाले विद्यार्थी जब टॉप करने लगें, तो यह "अंधी देवियां, लूले पुजारी" जैसा है।


17. न्यायाधीश खुद पक्षपाती हो जाए, तो अदालत की स्थिति "अंधी देवियां, लूले पुजारी" जैसी हो जाएगी।


18. राजनीति में बिना अनुभव के लोग मंत्री बन रहे हैं, यह तो "अंधी देवियां, लूले पुजारी" वाला हाल हो गया है।


19. अगर डॉक्टर ही गलत इलाज करने लगे, तो मरीजों की हालत "अंधी देवियां, लूले पुजारी" जैसी हो जाएगी।


20. फिल्म उद्योग में जब अभिनय से ज्यादा संबंधों को तवज्जो मिले, तो यह "अंधी देवियां, लूले पुजारी" की मिसाल है।


21. रेलवे विभाग में अधिकारी नाकारा हैं और ट्रेनें लेट चल रही हैं, यह "अंधी देवियां, लूले पुजारी" का उदाहरण है।


22. गाँव में बिजली की समस्या का समाधान करने वाले खुद बिजली चोरी करते हैं, यह "अंधी देवियां, लूले पुजारी" ही है।


23. बैंक के कर्मचारी खुद नियम नहीं जानते और ग्राहकों को गुमराह करते हैं, यह "अंधी देवियां, लूले पुजारी" वाली स्थिति है।


24. अगर किसान को कृषि से जुड़े फैसलों में ही भाग लेने न दिया जाए, तो यह "अंधी देवियां, लूले पुजारी" जैसी गलती होगी।


25. बच्चों के पालन-पोषण में जब माता-पिता खुद भटके हुए हों, तो घर की स्थिति "अंधी देवियां, लूले पुजारी" जैसी हो जाती है।



निष्कर्ष


"अंधी देवियां, लूले पुजारी" मुहावरा सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, प्रशासनिक और शैक्षिक व्यवस्थाओं की कमजोरियों को दर्शाने के लिए प्रयुक्त होता है। यह एक व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति है, जो यह स्पष्ट करती है कि जब नेतृत्व अक्षम होता है, तो संपूर्ण व्यवस्था अराजकता की ओर बढ़ जाती है।


इसलिए, यह आवश्यक है कि किसी भी व्यवस्था में योग्य और सक्षम व्यक्तियों को ही निर्णय लेने और संचालन का अधिकार दिया जाए, ताकि वह सही दिशा में आगे बढ़ सके। अन्यथा, यह मुहावरा हमें निरंतर स्मरण कराता रहेगा कि यदि अंधी देवियां पूजी जाएँ और लूले पुजारी पूजा करें, तो समाज का पतन निश्चित है।



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