"खून सवार होना" मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग / Khoon Sawar Hona Meaning In Hindi

  Khoon Sawar Hona Muhavare Ka Arth Aur Vakya Prayog / खून सवार होना मुहावरे का क्या मतलब होता है? मुहावरा- “खून सवार होना”। (Muhavara- Khoon Sawar Hona) अर्थ- अत्यधिक क्रोधित होना / किसी को मार डालने के लिए आतुर होना । (Arth/Meaning In Hindi- Atyadhik Krodhit Hona / Kisi Ko Mar Dalne Ke Liye Aatur Hona) “खून सवार होना” मुहावरे का अर्थ/व्याख्या इस प्रकार है- परिचय: हिंदी भाषा के मुहावरे जीवन की गहरी सच्चाइयों, भावनाओं और अनुभवों को संक्षेप में और प्रभावशाली तरीके से व्यक्त करने का एक सशक्त साधन हैं। इनमें सामान्य शब्दों के माध्यम से ऐसी स्थिति या भावना को व्यक्त किया जाता है जिसे साधारण वाक्यों में कहना लंबा और कम प्रभावी हो सकता है। ऐसा ही एक प्रचलित और भावपूर्ण मुहावरा है — "खून सवार होना"। यह मुहावरा आमतौर पर उस समय प्रयोग किया जाता है जब किसी व्यक्ति पर गुस्सा, बदले की भावना या आक्रोश इस हद तक हावी हो जाए कि वह अपने होश और संयम खो दे। शाब्दिक अर्थ: "खून" का संबंध यहाँ शरीर में प्रवाहित होने वाले रक्त से है, जो जीवन का मूल तत्व है। "सवार होना" का अर्थ ह...

“पारस-मणि” हिंदी कहानी / ParasMani Hindi Story


Hindi Kahani Paras Mani / हिंदी की लोकप्रिय कहानी पारसमणी ।

“पारस-मणि” हिंदी कहानी / ParasMani Hindi Story
Paras-Mani




कहानी : पारसमणी ।


बहुत समय पहले की बात है। भारत के एक छोटे से गाँव में एक गरीब मगर परिश्रमी किसान, रमेश, अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता था। उसकी ज़िन्दगी बहुत ही साधारण और संघर्षों से भरी थी, लेकिन वह हमेशा खुश और संतुष्ट रहता था। उसके पास एक छोटा सा खेत था, जिसमें वह दिन-रात मेहनत करता, परंतु फसल उतनी अच्छी नहीं होती कि उसका परिवार आराम से गुजर-बसर कर सके।


रमेश ने कभी किसी से शिकायत नहीं की। वह मानता था कि जो कुछ उसे मिलता है, वह उसकी मेहनत और किस्मत का ही परिणाम है। फिर भी, अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने और उन्हें एक बेहतर जीवन देने की चाहत उसके दिल में हमेशा बनी रहती थी।


एक साधु का आगमन


एक दिन, जब रमेश अपने खेत में काम कर रहा था, तभी उसे दूर से एक बूढ़े साधु आते दिखाई दिए। साधु का हुलिया काफी विचित्र था। उनकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी, और उनके चेहरे पर एक अनोखी शांति थी। साधु ने रमेश से पानी मांगा, और रमेश ने आदरपूर्वक उन्हें पानी पिलाया और विश्राम करने के लिए जगह दी।


साधु ने रमेश से पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है, बेटे?"


रमेश ने विनम्रता से उत्तर दिया, "मेरा नाम रमेश है, महाराज। मैं एक गरीब किसान हूँ।"


साधु ने ध्यानपूर्वक उसे देखा और फिर कहा, "तुम्हारी मेहनत देखकर लगता है कि तुम कुछ विशेष के योग्य हो। लेकिन क्या तुम किसी ऐसी चीज़ की चाहत रखते हो, जो तुम्हारी जिन्दगी को बदल सके?"


रमेश ने एक गहरी सांस लेते हुए उत्तर दिया, "महाराज, मेरे लिए तो यह जीवन ही सब कुछ है। लेकिन हाँ, मैं अपने बच्चों के लिए कुछ अच्छा करना चाहता हूँ, ताकि उनका भविष्य उज्जवल हो।"


पारस मणि का रहस्य


साधु मुस्कुराए और बोले, "तुम्हारी सच्चाई और सरलता ने मुझे बहुत प्रभावित किया है। मैं तुम्हें एक रहस्य बताने जा रहा हूँ। इस गाँव के पास पहाड़ी पर एक गुफा है, जिसमें एक ‘पारस मणि’ छिपी है। यह मणि इतनी अद्भुत है कि जिस भी लोहे को छू ले, उसे सोना बना देती है।"


रमेश को अपनी सुनाई हुई बातों पर यकीन नहीं हुआ। उसने संशय से पूछा, "महाराज, क्या यह सच है?"


साधु ने गंभीरता से कहा, "हाँ, लेकिन ध्यान रखना कि यह मणि केवल उन्हें मिलती है, जिनका दिल साफ होता है और जिनके इरादे नेक होते हैं। अगर तुम्हारा इरादा अच्छा है, तो तुम इस मणि को पा सकोगे।"


यह कहकर साधु वहाँ से चले गए, लेकिन रमेश के मन में एक नई उम्मीद की किरण जग गई।


गुफा की ओर यात्रा


अगली सुबह, रमेश ने अपने परिवार को गुफा के बारे में बताया। उसकी पत्नी ने कहा, "यह एक खतरनाक यात्रा हो सकती है, लेकिन अगर यह सच है तो हमारी तकदीर बदल सकती है।"


रमेश ने निश्चय किया कि वह अकेले ही गुफा तक जाएगा। कुछ आवश्यक सामान लेकर वह पहाड़ी की ओर चल पड़ा। रास्ता कठिन और खतरों से भरा हुआ था, लेकिन रमेश अपनी मंजिल की ओर दृढ़ता से बढ़ता गया। रास्ते में उसे कई बाधाओं का सामना करना पड़ा, लेकिन उसकी इच्छाशक्ति इतनी प्रबल थी कि वह हर कठिनाई को पार कर गया।


गुफा के रहस्य


कई घंटों की यात्रा के बाद, रमेश आखिरकार गुफा के द्वार पर पहुँच गया। गुफा के भीतर अंधेरा और रहस्यमयी शांति थी। धीरे-धीरे चलते हुए, उसने देखा कि गुफा के अंत में एक चट्टान के ऊपर एक छोटी सी चमकदार मणि रखी हुई थी। उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि यह वही पारस मणि है जिसकी उसे तलाश थी।


रमेश ने मणि को छूने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसके हाथ मणि के पास पहुँचे, उसे एक आवाज़ सुनाई दी। आवाज गहरी और गंभीर थी, "यह मणि केवल उन्हीं के लिए है जो अपने स्वार्थ से परे सोचना जानते हैं। यदि तुम इसे लोहे को सोना बनाने के लिए इस्तेमाल करोगे, तो यह तुम्हारे पास नहीं टिकेगी।"


रमेश कुछ देर के लिए सोच में पड़ गया। फिर उसने कहा, "मुझे यह मणि सिर्फ अपने परिवार की भलाई के लिए चाहिए। मैं इसे लेकर अमीर नहीं बनना चाहता, सिर्फ अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित करना चाहता हूँ।"


उसकी सच्चाई सुनकर मणि ने अपना चमत्कारी गुण उसे सौंप दिया, और रमेश ने उसे उठा लिया। उसके चेहरे पर संतोष और खुशी थी।


पारस मणि का प्रयोग


गाँव वापस आकर, रमेश ने पारस मणि को अपने घर में एक सुरक्षित जगह पर रखा। उसने सबसे पहले कुछ लोहे के टुकड़े लाकर मणि को उनके संपर्क में लाया, और आश्चर्यजनक रूप से वे सभी सोने में बदल गए। अब रमेश के पास सोने की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उसने इसका उपयोग बहुत सोच-समझकर किया।


रमेश ने अपने बच्चों की शिक्षा और अपने परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ही सोने का इस्तेमाल किया। उसने कभी भी मणि का दुरुपयोग नहीं किया और न ही लालच में आकर इसका अंधाधुंध प्रयोग किया। वह जानता था कि यह मणि केवल तब तक उसके पास रहेगी, जब तक वह इसके प्रति ईमानदार रहेगा।


गाँव की मदद


रमेश ने अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने के बाद बचा हुआ सोना गाँव के गरीब लोगों की मदद के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया। उसने गाँव के स्कूल में बच्चों के लिए किताबें, कपड़े और भोजन की व्यवस्था की। उसकी मदद से गाँव में खुशहाली आने लगी। लोगों का जीवन स्तर धीरे-धीरे सुधरने लगा।


गाँव के लोग रमेश की उदारता की प्रशंसा करने लगे। उन्होंने कभी नहीं जाना कि रमेश के पास पारस मणि है। उनके लिए वह बस एक ईमानदार और परोपकारी व्यक्ति था, जो सभी की मदद करता था।


मणि का अदृश्य होना


समय बीतता गया, और रमेश के मन में कभी भी लालच ने जन्म नहीं लिया। उसने सदा अपने परिवार और समाज की भलाई के लिए ही मणि का इस्तेमाल किया। एक दिन, जब रमेश ने मणि को हाथ में उठाया तो उसने देखा कि वह मणि धीरे-धीरे अदृश्य हो रही है। उसे एहसास हुआ कि शायद मणि ने अपना काम पूरा कर लिया है और अब उसे लौटने का समय आ गया है।


रमेश ने मुस्कुराते हुए मणि को अलविदा कहा। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन वह संतुष्ट था कि उसने मणि का सही इस्तेमाल किया।



कहानी का संदेश


रमेश ने पारस मणि को अपनी इच्छाओं और ज़रूरतों के बीच संतुलन रखते हुए उपयोग किया, और यह मणि केवल उसी के पास तब तक रही जब तक उसका दिल स्वार्थ और लालच से मुक्त था।


इस कहानी से यह सीख मिलती है कि सच्ची दौलत इंसान की अच्छाई और परोपकार में होती है। यदि हम अपने अंदर का लालच त्यागकर दूसरों की भलाई के लिए काम करें, तो हमारे जीवन में भी किसी न किसी रूप में 'पारस मणि' का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होगा।


समाप्त !



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