“डरपोक चूहा” हिंदी कहानी / Hindi Story Darpok Chuha
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Hindi Kahani Darpok Chooha / हिंदी स्टोरी डरपोक चूहा ।
“डरपोक चूहा” कहानी की शुरुआत:
गांव के किनारे एक पुरानी हवेली थी, जो अब खंडहर में बदल चुकी थी। उस हवेली में एक चूहा रहता था, जिसका नाम था "चीकू।" चीकू को सब डरपोक चूहा कहते थे। जब भी हवेली में कोई हलचल होती, चाहे वह सिर्फ हवा का झोंका ही क्यों न हो, चीकू घबरा कर अपने बिल में घुस जाता।
चीकू का डरपोक होना गांव में सबके लिए हंसी-मजाक का कारण बन गया था। बच्चे कहते, "चीकू तो अपनी परछाई से भी डरता है!" बुजुर्ग हंसते हुए उसे 'डर का राजा' बुलाते, और जवान तो उसे देख कर जानबूझकर डराने की कोशिश करते।
चीकू की दुनिया
चीकू का परिवार पहले बहुत बड़ा था, लेकिन धीरे-धीरे सब ने अपना अलग ठिकाना बना लिया। चीकू ही अकेला उस खंडहर में रह गया। दिन भर वह खाने की तलाश में घूमता और रात होते ही अपने बिल में दुबक जाता। उसका डर किसी से छिपा नहीं था। उसे अंधेरे से, बिल्ली से, यहां तक कि मटके में गिरते पानी की आवाज से भी डर लगता था।
उसकी इस डरपोक प्रकृति के कारण, अन्य चूहे भी उसका मजाक उड़ाते थे। एक दिन उसका दोस्त मोटू बोला, "चीकू, तूने कभी सोचा है कि अगर तूने अपने डर पर काबू नहीं पाया, तो एक दिन तुझे कोई बचाने नहीं आएगा?"
चीकू ने सिर झुकाकर कहा, "मोटू, मैं कोशिश करता हूं, लेकिन जब भी कोई अजीब आवाज आती है, मेरे पैर खुद ब खुद कांपने लगते हैं।"
एक दिन कुछ अजीब हुआ
एक रात, जब चीकू अपने बिल में सो रहा था, उसे अचानक हवेली के बड़े कमरे से अजीब-सी आवाजें सुनाई दीं। पहले तो उसने अनसुना कर दिया, लेकिन फिर आवाजें तेज होती गईं। ऐसा लग रहा था, जैसे कोई मदद के लिए पुकार रहा हो।
चीकू ने अपनी आदत के अनुसार बिल से बाहर झांकने की हिम्मत नहीं की। लेकिन कुछ देर बाद, उसकी जिज्ञासा डर से जीत गई। उसने सोचा, "अगर कोई सच में मुसीबत में है, तो मुझे कुछ करना चाहिए।"
डरते-डरते चीकू ने अपने बिल से बाहर कदम रखा। पूरे खंडहर में सन्नाटा था। हवा के साथ खिड़कियां चरमराने लगीं। चीकू का दिल तेजी से धड़कने लगा। उसने खुद को संभाला और आवाज की दिशा में बढ़ा।
साहस की परीक्षा
आखिरकार चीकू उस कमरे में पहुंचा, जहां से आवाजें आ रही थीं। वहां उसने देखा कि एक छोटी-सी गौरैया, जो शायद कहीं से उड़ते हुए खंडहर में आ गई थी, जाल में फंसी हुई थी। वह फड़फड़ा रही थी और मदद के लिए पुकार रही थी।
चीकू को समझ में नहीं आया कि वह क्या करे। उसके दिमाग में दो आवाजें गूंजने लगीं। पहली कह रही थी, "तू क्या कर सकता है? भाग जा, कहीं तेरे ऊपर कोई खतरा न आ जाए!" लेकिन दूसरी आवाज कह रही थी, "अगर तूने इसकी मदद नहीं की, तो यह बेचारी शायद मर जाएगी।"
चीकू ने गहरी सांस ली और खुद को समझाया, "मुझे इस बार डर के आगे नहीं झुकना चाहिए।" उसने अपने नुकीले दांतों से जाल को काटना शुरू किया। यह काम आसान नहीं था, लेकिन चीकू ने हार नहीं मानी। धीरे-धीरे जाल कमजोर पड़ने लगा और आखिरकार वह टूट गया।
गौरैया आजाद होकर उड़ने लगी। उसने खुशी से चीकू को धन्यवाद दिया, "तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया, चीकू। तुमने आज मेरी जान बचाई।"
गांव में नया नाम
गौरैया की मदद के बाद, चीकू का आत्मविश्वास बढ़ने लगा। उसने महसूस किया कि डर को हराया जा सकता है, अगर हम अपनी कमजोरियों का सामना करें। अब वह पहले जैसा डरपोक नहीं रहा।
कुछ ही दिनों में, गौरैया ने चीकू की बहादुरी की कहानी पूरे गांव में फैला दी। जो लोग कभी उसका मजाक उड़ाते थे, अब वे उसकी तारीफ करने लगे। बच्चे कहते, "डरपोक चूहा नहीं, अब तो वह हीरो चूहा है!" बुजुर्ग उसे दुआएं देने लगे, और जवान भी उसकी हिम्मत को सराहने लगे।
चीकू का सबक
चीकू ने अपने अनुभव से यह सीखा कि डर का सामना करना ही सच्ची बहादुरी है। अब वह हवेली में बेखौफ घूमता था। उसे किसी बात का डर नहीं था, क्योंकि उसने जान लिया था कि डर सिर्फ हमारे मन की एक भावना है, जिसे हिम्मत से हराया जा सकता है।
उसकी कहानी न केवल चूहों के बीच, बल्कि पूरे गांव में मिसाल बन गई। चीकू अब सबका चहेता बन गया था। उसने साबित कर दिया कि डरपोक होने का मतलब यह नहीं कि हम हमेशा डरते ही रहेंगे। सही समय पर, सही फैसले से हम अपनी कमजोरियों पर जीत हासिल कर सकते हैं।
और इस तरह, "डरपोक चूहा" अब पूरे गांव का हीरो बन गया।
समाप्त।
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