“कब्र में पाँव लटकाना” मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग / Kabra Me Paon Latkana Meaning In Hindi

Kabra Me Panv Latkana Muhavare Ka Arth Aur Vakya Prayog / कब्र में पाँव लटकाना मुहावरे का अर्थ क्या होता है? मुहावरा- “कब्र में पाँव लटकाना”। ( Muhavara- Kabra Me Panv Latkana ) अर्थ- अत्यधिक उम्र का होना / मृत्यु के निकट होना । ( Arth/Meaning in Hindi- Atyadhik Umra Ka H ona / Mrityu Ke Nikat Hona ) “कब्र में पाँव लटकाना” मुहावरे का अर्थ/व्याख्या इस प्रकार है- परिचय: हिंदी भाषा में मुहावरों का विशेष महत्व है। ये न केवल भाषा को रोचक और प्रभावशाली बनाते हैं, बल्कि भावों की गहराई को भी संक्षेप में प्रकट करते हैं। ऐसा ही एक प्रसिद्ध मुहावरा है — "कब्र में पाँव लटकाना"। यह मुहावरा आमतौर पर बुज़ुर्ग या बहुत वृद्ध लोगों के संदर्भ में प्रयोग होता है, जिनका जीवन अंत के समीप प्रतीत होता है। अर्थ: "कब्र में पाँव लटकाना" का अर्थ होता है बहुत अधिक वृद्ध होना या इतना बूढ़ा हो जाना कि मृत्यु निकट हो। यह मुहावरा उस अवस्था को दर्शाता है जब व्यक्ति शारीरिक रूप से बेहद दुर्बल हो जाता है और उसका जीवन धीरे-धीरे मृत्यु की ओर बढ़ने लगता है। इसका सीधा संबंध उम्र के अंतिम पड़ाव से है। यह म...

“ठाकुर का कुआँ” मुंशी प्रेमचंद की कहानी / Hindi Story Thakur Ka Kuan


Munshi Premchand Ki Kahani “Thakur Ka Kuan” / कहानी “ठाकुर का कुआँ” का सारांश सहित वर्णन करें ।

 
“ठाकुर का कुआँ” मुंशी प्रेमचंद की कहानी / Hindi Story Thakur Ka Kuan
Hindi Story:  Thakur Ka Kuan






कहानी : ठाकुर का कुआँ

लेखक : मुंशी प्रेमचंद 


कहानी "ठाकुर का कुआँ" प्रसिद्ध हिंदी लेखक प्रेमचंद द्वारा लिखी गई एक मार्मिक और समाजिक मुद्दों पर आधारित कहानी है। इस कहानी में भारतीय समाज में जातिवाद और भेदभाव को दर्शाया गया है, जहाँ निम्न जाति के लोगों को उच्च जाति के लोगों से किस प्रकार का शोषण और अन्याय सहना पड़ता है, इसका वर्णन किया गया है।


कहानी का सारांश:


कहानी की पृष्ठभूमि गाँव की है, जहाँ ठाकुर का एक कुआँ है। गाँव में ठाकुर के कुएँ का पानी सबसे शुद्ध और साफ माना जाता है। हालांकि, गाँव के निम्न जाति के लोगों को इस कुएँ से पानी भरने का अधिकार नहीं है, क्योंकि उस समय समाज में ऊँच-नीच का भेदभाव बहुत गहरा था। ठाकुर का कुआँ केवल उच्च जातियों के लिए आरक्षित था, और निम्न जाति के लोग उस कुएँ से पानी नहीं भर सकते थे। वे लोग आमतौर पर गंदे और प्रदूषित जगहों से पानी लाने के लिए मजबूर होते थे।


कहानी की मुख्य पात्र "गंगी" है, जो एक निम्न जाति की स्त्री है। उसके घर में पानी की भारी कमी होती है क्योंकि उसका पति, "जोखू", बीमार है और गंदा पानी पीने की वजह से उसकी हालत और बिगड़ती जा रही है। गंगी को चिंता होती है कि अगर उसका पति गंदा पानी पीता रहा तो उसकी जान को खतरा हो सकता है। गंगी चाहती है कि वह अपने पति के लिए ठाकुर के कुएँ से साफ पानी लाए, लेकिन उसे समाज के नियमों का डर है।


गंगी रात के समय ठाकुर के कुएँ पर जाती है, ताकि वह चोरी से पानी भर सके। उसकी यह सोच होती है कि रात में किसी की नज़र नहीं पड़ेगी, और वह चुपचाप पानी ले आएगी। जब वह कुएँ पर पहुँचती है, तो डरते-डरते पानी भरने की कोशिश करती है। लेकिन जैसे ही वह पानी खींचने लगती है, ठाकुर का सेवक आकर उसे देख लेता है। डर के मारे गंगी अपनी बाल्टी छोड़कर भाग जाती है। गंगी का यह प्रयास असफल हो जाता है और वह फिर से गंदे तालाब से पानी लाने के लिए मजबूर होती है।


कहानी का वर्णन:


गंगी और उसके पति जोखू की स्थिति समाज में सबसे निचली श्रेणी की है। वे गरीब और निम्न जाति के हैं, जिनका जीवन कठिनाईयों और समाज के अन्यायपूर्ण नियमों में बंधा हुआ है। जोखू बीमार है, और उसके पास न तो इलाज के साधन हैं और न ही साफ पानी पीने का। गंदी पानी से उसकी हालत और बिगड़ती जा रही है। गंगी को अपने पति की बीमारी के कारण अत्यधिक चिंता है, और वह किसी भी कीमत पर उसे बचाना चाहती है।


गाँव के उच्च जाति के लोग, विशेषकर ठाकुर, अपने कुएँ के पानी को शुद्ध और पवित्र मानते हैं। वे नहीं चाहते कि निम्न जाति के लोग उस पानी का उपयोग करें, क्योंकि उनके अनुसार, इससे पानी "अपवित्र" हो जाएगा। इस प्रकार, निम्न जाति के लोगों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया है और वे समाज के बंधनों में बंधे हुए हैं।


गंगी की हालत इस समाजिक व्यवस्था के खिलाफ एक प्रतिरोध के रूप में सामने आती है। वह जानती है कि अगर वह ठाकुर के कुएँ से पानी लेगी तो उसे सजा दी जा सकती है। फिर भी, अपने पति की जान बचाने के लिए वह इस खतरे को मोल लेने का निर्णय करती है।


रात का समय उसे एक मौका देता है, क्योंकि उस समय कोई नहीं देखेगा। डरते हुए वह ठाकुर के कुएँ पर जाती है। उसे अपने किए जाने वाले कार्य का भय है, लेकिन अपने पति के प्रति प्यार और दया की भावना उसे हिम्मत देती है। वह बाल्टी कुएँ में डालकर पानी खींचने लगती है, लेकिन तभी ठाकुर का सेवक आता है और गंगी पकड़ी जाती है। घबराहट में गंगी वहाँ से भाग जाती है और पानी नहीं भर पाती।


कहानी के अंत में गंगी की असफलता दिखाती है कि निम्न जाति के लोगों की स्थिति कितनी निराशाजनक थी। उन्हें जीवन के मूलभूत अधिकारों से भी वंचित रखा जाता था। गंदी तालाब का पानी पीने के बावजूद वे मजबूर होते हैं क्योंकि समाज में उनके लिए अन्य कोई विकल्प नहीं होता।


निष्कर्ष:


कहानी "ठाकुर का कुआँ" समाज में व्याप्त जातिवाद, भेदभाव और अन्यायपूर्ण व्यवस्था पर गहरा प्रहार करती है। यह दर्शाती है कि निम्न जाति के लोग किस तरह शोषण का शिकार होते थे और उनके पास अपने जीवन को सुधारने का कोई साधन नहीं था। गंगी की मजबूरी और असफलता सामाजिक बुराइयों के कारण उत्पन्न मानवता की कठिनाईयों को दर्शाती है।



कहानी “ठाकुर का कुआँ” से हमें क्या सिख मिलती है?


कहानी "ठाकुर का कुआँ" से हमें कई महत्वपूर्ण सीख मिलती हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं:


1. समाज में व्याप्त जातिवाद और भेदभाव: कहानी यह दिखाती है कि किस प्रकार जाति के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव किया जाता है। यह हमें सिखाती है कि जाति, धर्म, या किसी अन्य पहचान के आधार पर भेदभाव करना अमानवीय है और समाज के विकास में बाधक है।


2. मानवता का महत्व: गंगी और जोखू की स्थिति यह बताती है कि इंसानियत और दूसरों के प्रति करुणा सबसे महत्वपूर्ण हैं। चाहे कोई भी व्यक्ति हो, उसकी मदद करने और उसे बुनियादी जरूरतें प्रदान करने का अधिकार सभी को होना चाहिए।


3. आर्थिक और सामाजिक असमानता: कहानी में गरीबी और सामाजिक असमानता की गहरी झलक मिलती है। यह हमें सिखाती है कि गरीब और वंचित वर्गों को उनका हक देने के लिए समाज में बदलाव की जरूरत है।


4. प्रतिकूल परिस्थितियों में भी संघर्ष: गंगी का साहस दिखाता है कि कठिनाइयों और सामाजिक अन्याय के बावजूद इंसान को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। अपने प्रियजनों की भलाई के लिए वह समाज के नियमों का उल्लंघन करने का साहस दिखाती है।


5. समानता और अधिकारों की मांग: कहानी यह संदेश देती है कि हर व्यक्ति को जीवन के बुनियादी अधिकार मिलने चाहिए, चाहे वह किसी भी जाति या वर्ग से हो। पानी जैसी बुनियादी जरूरतों पर किसी एक वर्ग का अधिकार नहीं हो सकता।


कहानी हमें जातिवाद और सामाजिक अन्याय के खिलाफ खड़े होने, समानता की वकालत करने और मानवता के मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देती है।



कहानी “ठाकुर का कुआँ” क्यूं लिखी गई?


कहानी "ठाकुर का कुआँ" प्रेमचंद ने सामाजिक और जातिगत असमानता को उजागर करने के लिए लिखी थी। प्रेमचंद के समय में भारतीय समाज में जातिवाद बहुत गहराई से जड़ें जमा चुका था, और निम्न जाति के लोगों के साथ अत्यधिक भेदभाव किया जाता था। इस कहानी के माध्यम से प्रेमचंद ने उन सामाजिक समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया जो गरीब और निम्न जाति के लोगों को झेलनी पड़ती थीं, खासकर उच्च जाति द्वारा उन पर किए गए अन्याय और शोषण।


कहानी लिखने का मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित था:


1. जातिगत भेदभाव की आलोचना: प्रेमचंद ने इस कहानी के माध्यम से समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव और असमानता को चुनौती दी। कहानी यह दर्शाती है कि किस प्रकार निम्न जाति के लोगों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित किया जाता था, जैसे कि पानी जैसी बुनियादी जरूरतों से भी उन्हें वंचित किया गया।


2. सामाजिक असमानता को उजागर करना: कहानी के जरिए प्रेमचंद ने समाज में फैली आर्थिक और सामाजिक असमानताओं को सामने रखा। गंगी और जोखू की स्थिति इस बात का प्रतीक है कि किस प्रकार निम्न जातियों के लोग गरीबी और शोषण का शिकार होते हैं, और उनके पास कोई साधन नहीं होता।


3. मानवता और करुणा का संदेश: प्रेमचंद ने यह दिखाने की कोशिश की कि इंसानियत सबसे ऊपर होनी चाहिए। कहानी में यह स्पष्ट है कि गंगी के पति की बीमारी के बावजूद समाज उसे शुद्ध पानी से वंचित करता है, जो अमानवीयता को दर्शाता है।


4. समाज में सुधार की आवश्यकता: प्रेमचंद ने यह कहानी इसलिए भी लिखी ताकि लोगों को इस अन्यायपूर्ण व्यवस्था का एहसास हो और वे समाज में सुधार के लिए कदम उठाएँ। कहानी सामाजिक बदलाव की मांग करती है और यह संदेश देती है कि सभी मनुष्यों को समान अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए।



कुल मिलाकर, "ठाकुर का कुआँ" समाज की विकृतियों और समस्याओं पर ध्यान आकर्षित करने के लिए लिखी गई थी, ताकि लोग सामाजिक असमानताओं को समझें और सुधार के लिए प्रेरित हों।



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