“काँव-काँव करना” मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग / Kanv Kanv Karna Meaning In Hindi
Kanv Kanv Karna Muhavare Ka Arth Aur Vakya Prayog / कांव कांव करना मुहावरे का अर्थ क्या होता है?
मुहावरा- “काँव-काँव करना”।
(Muhavara- Kanv Kanv Karna)
अर्थ- बिना मतलब के चिल्लाना / खामखां शोर करना ।
(Arth/Meaning in Hindi- Bina Matlab Ke Chillana / Khamakha Short Karna)
“कांव-कांव” करना मुहावरे का अर्थ/व्याख्या इस प्रकार है-
परिचय:
हिंदी भाषा में मुहावरे अभिव्यक्ति को संक्षिप्त, सजीव और प्रभावशाली बनाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम हैं। ये भाषा को अधिक रोचक और अर्थपूर्ण बनाते हैं। हर मुहावरे का एक विशेष संदर्भ और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि होती है। ऐसा ही एक लोकप्रिय मुहावरा है — "काँव-काँव करना"। इस मुहावरे का उपयोग हम प्रायः ऐसे व्यक्तियों के लिए करते हैं जो बिना कारण चिल्लाते रहते हैं या निरर्थक बातें करते हैं।
मुहावरे का शाब्दिक अर्थ:
"काँव-काँव" शब्द कौए की आवाज़ का अनुकरण करता है। कौआ जब बोलता है तो उसकी आवाज़ तेज़, कर्कश और लगातार होती है। जब कोई व्यक्ति भी बिना आवश्यकता के लगातार बोलता है, बहस करता है या ऊँची आवाज़ में शोर मचाता है, तो उसकी तुलना कौए की "काँव-काँव" से की जाती है।
इसलिए "काँव-काँव करना" का शाब्दिक अर्थ है — लगातार ऊँची, कर्कश और परेशान करने वाली आवाज़ में बोलना।
मुहावरे का भावार्थ:
"काँव-काँव करना" मुहावरे का भावार्थ यह है कि कोई व्यक्ति बिना बात के शोर मचाए, चिल्लाए या व्यर्थ की बातें करे। यह एक नकारात्मक और तिरस्कारपूर्ण अभिव्यक्ति है, जो ऐसे लोगों के लिए प्रयोग होती है जो दूसरों को परेशान करते हैं, ज़रूरत से ज़्यादा बोलते हैं, या बहस करते हैं जबकी चुप रहना अधिक उचित होता है।
उदाहरण वाक्य:
1. बच्चे पढ़ाई कर रहे थे और बाहर के लोग काँव-काँव कर रहे थे, जिससे ध्यान भंग हो गया।
2. नेता जी भाषण कम और काँव-काँव ज़्यादा कर रहे थे।
3. बिना मुद्दे के काँव-काँव करने से अच्छा है, चुपचाप समाधान ढूंढ़ा जाए।
4. जब भी कोई सुझाव दो, वह काँव-काँव शुरू कर देता है।
प्रयोग की स्थिति:
यह मुहावरा तब प्रयोग किया जाता है जब:
*कोई व्यक्ति निरर्थक बहस कर रहा हो।
*कोई चिल्ला रहा हो लेकिन उसमें कोई ठोस बात न हो।
*बातचीत का कोई उद्देश्य न हो और केवल शोर ही हो।
यह व्यवहार आमतौर पर सामाजिक या पारिवारिक संदर्भों में अनुचित माना जाता है। इसलिए इस मुहावरे का प्रयोग आलोचना के रूप में किया जाता है।
साहित्यिक दृष्टिकोण:
हिंदी साहित्य में "काँव-काँव" जैसे ध्वन्यात्मक (onomatopoeic) शब्दों का प्रयोग भाषा को सजीव और अभिव्यक्तिपूर्ण बनाता है। यह मुहावरा विशेष रूप से व्यंग्यात्मक शैली में बहुत उपयोगी है। लेखक जब किसी की वाचालता या मूर्खतापूर्ण वक्तव्य की आलोचना करना चाहते हैं, तो इस मुहावरे का सहारा लेते हैं।
समाज में प्रासंगिकता:
वर्तमान समय में सोशल मीडिया, टेलीविज़न डिबेट्स और राजनीतिक भाषणों में इस मुहावरे की प्रासंगिकता बढ़ गई है। लोग अक्सर बिना तथ्यों के केवल अपनी बात मनवाने के लिए चिल्लाते हैं या आलोचना करते हैं। ऐसे वातावरण में "काँव-काँव करना" एक सटीक मुहावरा है जो स्थिति को व्यंग्य के माध्यम से उजागर करता है।
नैतिक शिक्षा:
*इस मुहावरे से हमें यह सीख मिलती है कि:
*बात को तार्किक ढंग से रखना चाहिए।
*व्यर्थ की बहस और ऊँची आवाज़ में बोलने से किसी समस्या का समाधान नहीं होता।
*समाज में शांति और समझदारी से बात करना अधिक लाभकारी होता है।
"काँव-काँव करना" मुहावरे का वाक्य-प्रयोग / Kanv Kanv Karna Muhavare Ka Vakya Prayog
1. बिना कारण काँव-काँव करना उसकी आदत बन गई है।
2. तुम हर बात पर काँव-काँव क्यों करने लगते हो?
3. जब समाधान नहीं देना तो काँव-काँव करने से क्या फायदा?
4. मीटिंग में सभी शांत थे, लेकिन एक आदमी लगातार काँव-काँव कर रहा था।
5. बच्चे पढ़ाई में लगे थे और बाहर कोई जोर-जोर से काँव-काँव कर रहा था।
6. नेताओं का काम ही आजकल काँव-काँव करना रह गया है।
7. अगर कोई गलती हो जाए तो समझाओ, काँव-काँव मत करो।
8. सोशल मीडिया पर लोग बिना तथ्य के काँव-काँव कर रहे हैं।
9. वह दूसरों की बात सुनता नहीं, बस अपनी काँव-काँव करता रहता है।
10. टीवी डिबेट में सभी एंकर ही काँव-काँव कर रहे थे, कोई सुन नहीं रहा था।
11. माँ ने गुस्से में कहा — “अब ज़्यादा काँव-काँव मत करो, जाकर पढ़ाई करो!”
12. ऑफिस में एक व्यक्ति हमेशा काँव-काँव करता है, जिससे सब परेशान हैं।
13. तुम्हारे काँव-काँव करने से बात बिगड़ सकती है, शांति से समझाओ।
14. बुज़ुर्गों के सामने काँव-काँव करना अशोभनीय है।
15. जो काम नहीं करते, वही सबसे ज़्यादा काँव-काँव करते हैं।
निष्कर्ष:
"काँव-काँव करना" एक अत्यंत प्रचलित हिंदी मुहावरा है, जो वाचाल, तर्कहीन और कर्कश व्यक्तित्व की आलोचना करने के लिए प्रयोग होता है। यह मुहावरा केवल भाषा को सजाने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह हमें सोचने पर भी मजबूर करता है कि हम कैसे बोलें, कब बोलें और कितना बोलें। इसलिए हमें इस मुहावरे के अर्थ को समझते हुए अपने व्यवहार में संतुलन और संयम लाना चाहिए।
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