“थोथा चना बाजे घना” मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग / Thotha Chana Baje Ghana Meaning In Hindi
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Thotha Chana Baaje Ghana Muhavare Ka Arth Aur Vakya Prayog / थोथा चना बाजे घना मुहावरे का अर्थ क्या होता है?
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Thotha Chana Baje Ghana |
मुहावरा- “थोथा चना बाजे घना” ।
( Muhavara- Thotha Chana Baje Ghana )
अर्थ- ओछा व्यक्ति हमेशा दिखावा करता है / दिखावा अत्यधिक और सार कम / गुण से ज्यादा दिखावा करना ।
( Arth/Meaning in Hindi- Ochha Vyakti Hamesha Dikhawa Karta Hai / Dikhawa Atyadhik Aur Saar Kam / Gun Se Jyada Dikhawa Karna )
“थोथा चना बाजे घना” मुहावरे का अर्थ/व्याख्या इस प्रकार है-
थोथा चना बाजे घना एक प्रसिद्ध हिंदी मुहावरा है, जो सामान्यतः उन लोगों या वस्तुओं के लिए प्रयुक्त होता है, जो आडंबरपूर्ण होते हैं, परंतु उनके पास वास्तविकता में विशेष गुण, योग्यता या महत्व नहीं होता। इसका शाब्दिक अर्थ है कि "खाली या हल्का चना ज़्यादा आवाज़ करता है।" इस मुहावरे के माध्यम से यह बताने की कोशिश की जाती है कि जो लोग भीतर से कमज़ोर या गुणहीन होते हैं, वे अक्सर अधिक दिखावा या शोर मचाते हैं।
अर्थ
इस मुहावरे का तात्पर्य यह है कि जो लोग वास्तव में सक्षम, ज्ञानी या गुणी होते हैं, वे शांत और सरल स्वभाव के होते हैं। जबकि, जिनके पास वास्तविक गुणों या उपलब्धियों की कमी होती है, वे दिखावे और शोर-शराबे के माध्यम से अपने महत्व को साबित करने का प्रयास करते हैं।
उदाहरण
1. एक व्यक्ति को अपने ज्ञान का प्रदर्शन करने की आदत है, परंतु जब वास्तविक समस्या हल करने की बात आती है, तो वह असफल हो जाता है। ऐसे व्यक्ति के लिए यह मुहावरा उपयुक्त है।
2. परीक्षा में अच्छे अंक पाने वाला छात्र बिना किसी दिखावे के मेहनत करता है, जबकि औसत प्रदर्शन करने वाला छात्र अपनी छोटी-छोटी उपलब्धियों का बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन करता है।
व्याख्या
यह मुहावरा समाज में व्याप्त उन प्रवृत्तियों पर प्रहार करता है, जो केवल दिखावे और आडंबर पर आधारित होती हैं। अक्सर देखा गया है कि गुणहीन व्यक्ति अपनी कमियों को छिपाने के लिए ऊँची-ऊँची बातें करता है या खुद को अधिक महत्वपूर्ण दिखाने की कोशिश करता है। यह प्रवृत्ति व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर हानिकारक हो सकती है, क्योंकि यह सच्चे गुणों और योग्यता को पहचानने में बाधा उत्पन्न करती है।
इस मुहावरे के माध्यम से यह शिक्षा दी जाती है कि हमें व्यक्तित्व में सादगी, ईमानदारी और मौलिकता को प्राथमिकता देनी चाहिए। किसी भी व्यक्ति को उसके शब्दों से नहीं, बल्कि उसके कर्मों और परिणामों से आंकना चाहिए। दिखावे से प्रभावित होने की बजाय, वास्तविकता को पहचानने और समझने का प्रयास करना चाहिए।
समकालीन परिप्रेक्ष्य
आज के दौर में सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों के चलते यह मुहावरा और भी प्रासंगिक हो गया है। कई लोग अपनी वास्तविक योग्यता से अधिक, अपनी उपस्थिति या दिखावे के आधार पर पहचान बनाने की कोशिश करते हैं। यह प्रवृत्ति लंबे समय तक टिकाऊ नहीं होती और अंततः सच्चाई सामने आ जाती है।
निष्कर्ष
"थोथा चना बाजे घना" मुहावरा हमें यह सिखाता है कि हमें अपने कार्यों और गुणों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि केवल दिखावा करने पर। सच्चे गुण और योग्यता बिना शोर-शराबे के अपने आप प्रकाशित होते हैं।
"थोथा चना बाजे घना" मुहावरे का वाक्य प्रयोग / Thotha Chana Baaje Ghana Muhavare Ka Vakya Prayog.
1. राहुल को हर विषय पर बहस करना पसंद है, लेकिन गहराई से ज्ञान न होने पर लोग उसे देखकर कहते हैं, "थोथा चना बाजे घना।"
2. जो लोग खुद को सबसे होशियार बताते हैं, अक्सर उनके बारे में यह मुहावरा सटीक बैठता है कि "थोथा चना बाजे घना।"
3. सभा में जोर-जोर से चिल्लाने वाले वक्ता की बातों में कोई तथ्य नहीं था, जिससे सभी ने कहा, "थोथा चना बाजे घना।"
4. परीक्षा में कम नंबर लाने के बाद भी रोहन अपने ज्ञान का दिखावा करता रहता है, जिससे यह कहावत उस पर फिट बैठती है।
5. शोर मचाने वाले लोग हमेशा सही नहीं होते, यह सोचकर दादी ने कहा, "थोथा चना बाजे घना।"
6. ऑफिस में जो कर्मचारी सबसे ज्यादा दिखावा करते हैं, वे अक्सर काम में कमजोर होते हैं, इसलिए उनके लिए यह मुहावरा सही है।
7. कक्षा के कुछ छात्र अपनी हर बात पर शेखी बघारते रहते हैं, लेकिन परिणाम आते ही पता चलता है कि "थोथा चना बाजे घना।"
8. बिना मेहनत किए बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लोगों पर यह कहावत पूरी तरह लागू होती है।
9. स्मार्टफोन खरीदने के बाद रोहित हर समय अपनी शेखी बघारता रहता है, तब उसके दोस्त हंसते हुए कहते हैं, "थोथा चना बाजे घना।"
10. जो व्यक्ति अपने गुणों को प्रचारित करने की कोशिश करता है, उसे यह समझना चाहिए कि "थोथा चना बाजे घना।”
"थोथा चना बाजे घना" मुहावरे पर एक छोटी सी कहानी-
गांव के बीचों-बीच एक बड़ा बाजार लगता था, जहां हर तरह की चीजें बिकती थीं। उसी बाजार में एक किसान, रामू, अपने गेहूं और चने बेचने आता था। रामू मेहनती था, लेकिन साथ ही कुछ अभिमानी भी। उसे लगता था कि उसकी हर बात सही है और वह सबसे ज्यादा जानकार है।
एक दिन, बाजार में रामू का सामना श्यामू नाम के एक और किसान से हुआ। श्यामू कम बोलने वाला और अपने काम में मस्त रहने वाला व्यक्ति था। वह हर साल अपने खेतों में उन्नत फसल उगाता और बाजार में अच्छी कीमत पर बेचता। लेकिन श्यामू कभी अपनी सफलता का ढिंढोरा नहीं पीटता था।
रामू ने देखा कि श्यामू के चने ज्यादा चमकदार और भारी थे, जबकि उसके चने हल्के और छोटे थे। रामू ने श्यामू को ताना मारा, "क्यों भाई, क्या ये चमक-दमक दिखाने के लिए हैं? असली किसान तो मेहनत से उगाए गए अनाज को बेचता है, न कि दिखावे के लिए!"
श्यामू मुस्कुराया और चुपचाप अपने काम में लग गया। बाजार में खरीदारों ने श्यामू के चने ज्यादा पसंद किए और उसकी पूरी फसल बिक गई। रामू के चने कम दाम पर भी मुश्किल से बिके।
इस घटना के बाद रामू को गुस्सा आया। उसने सोचा कि अगली बार वह बाजार में ज्यादा ध्यान खींचने के लिए खूब शोर मचाएगा और सबको दिखाएगा कि वही असली किसान है।
अगले हफ्ते, रामू ने अपने चनों को बाजार में लाते समय बर्तन में डालकर जोर-जोर से हिलाया। बर्तन से चनों की खनकती आवाज सुनकर लोग उसकी तरफ आकर्षित हुए। रामू ने जोर से कहा, "आओ देखो! ये चने सबसे अच्छे हैं, सबसे ताजे और सबसे स्वादिष्ट!"
लेकिन जब ग्राहकों ने उसके चने खरीदे, तो पाया कि उनमें ज्यादातर थोथे थे—खोखले और वजन में हल्के। ग्राहकों ने नाराज होकर रामू को खरी-खोटी सुनाई। वहीं, श्यामू ने फिर से अपने अच्छे चनों को बिना किसी दिखावे के बेच दिया।
इस घटना ने रामू को गहरी सीख दी। उसे एहसास हुआ कि केवल शोर मचाने या दिखावा करने से कुछ नहीं होता। असली सफलता मेहनत और गुणवत्ता में है, न कि खोखली बातों में।
इस तरह, रामू को "थोथा चना बाजे घना" का असली मतलब समझ में आया। उसने अपनी गलती से सबक लिया और अगली बार अपने चनों की गुणवत्ता पर ध्यान दिया। धीरे-धीरे उसने दिखावा करना बंद कर दिया और मेहनत से अपनी फसल बेहतर बनाई।
कहानी का संदेश यही है कि खोखले लोग अक्सर ज्यादा शोर मचाते हैं, लेकिन असली सफलता काम और गुणवत्ता में छिपी होती है।
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