कहानी: “प्रहलाद और नरसिम्हा – एक भक्ति की अमर गाथा” / Mahavatar Narsimha
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Mahavatar Narsimha Ki Kahani / "महावतार नरसिम्हा” की कहानी
1. एक पुरानी दुनिया:
बहुत-बहुत समय पहले, जब न शहर थे, न कारें, न मोबाइल—सिर्फ जंगल थे, राजाओं के महल थे, और तपस्वियों की गुफाएं—तब धरती पर राक्षसों और देवताओं के बीच बराबरी की लड़ाई चलती थी।
एक शक्तिशाली असुर रानी थी – दिति। उसके दो पुत्र थे – हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु। दोनों बहुत बलवान और महत्वाकांक्षी थे। वे चाहते थे कि तीनों लोकों पर असुरों का राज हो और भगवान विष्णु का नाम मिट जाए।
2. हिरण्याक्ष का पतन:
हिरण्याक्ष ने धरती को समुद्र में डुबोने की ठानी। वह इतना ताकतवर था कि देवता भी कांप उठे। अंत में भगवान विष्णु को वराह अवतार में आना पड़ा – एक विशाल सूअर के रूप में – और उन्होंने हिरण्याक्ष का वध किया।
हिरण्यकशिपु ने यह देखा और ठान लिया कि वह विष्णु से बदला लेगा। उसके हृदय में नफ़रत की आग जलने लगी।
3. अजेय बनने की चाह:
हिरण्यकशिपु जंगलों में गया। उसने तप किया – कठोर, लंबा और कठिन तप। वह एक टांग पर खड़ा रहा, न खाया, न सोया, न बोला।
भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हुए। उन्होंने पूछा, “मांगो, क्या वर चाहिए?”
हिरण्यकशिपु ने मुस्कराकर कहा – “मैं नहीं मरना चाहता – न किसी इंसान से, न किसी जानवर से। न दिन में, न रात में। न घर में, न बाहर। न जमीन पर, न आकाश में। न किसी हथियार से।”
ब्रह्मा मुस्कराए। “तथास्तु।”
अब हिरण्यकशिपु खुद को अमर समझने लगा।
4. उत्पन्न हुआ भक्त प्रहलाद:
समय बीता। हिरण्यकशिपु का एक पुत्र हुआ – प्रहलाद।
लेकिन यहाँ चौंकाने वाली बात ये थी – प्रहलाद बचपन से ही विष्णु भगवान का भक्त था!
जहाँ पिता विष्णु से नफरत करता था, वहीं बेटा रोज़ नामजप करता – “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।”
हिरण्यकशिपु को यह पसंद नहीं आया।
“तू मेरे दुश्मन की भक्ति करता है?” उसने गुस्से से कहा।
प्रहलाद मुस्कराया – “पिता, भगवान सभी के हैं – आपके भी, मेरे भी। वो अंदर भी हैं, बाहर भी।”
हिरण्यकशिपु आगबबूला हो गया।
5. प्रहलाद की परीक्षा:
पिता ने प्रहलाद को सिखाने की कोशिश की – कभी प्यार से, कभी डराकर, कभी धमकाकर।
पर प्रहलाद न बदला। तब शुरू हुई क्रूर परीक्षाएं।
उसे विष दे दिया गया – वो बच गया।
उसे साँपों के गड्ढे में फेंका गया – भगवान ने रक्षा की।
उसे पहाड़ी से नीचे गिराया गया – कुछ नहीं हुआ।
हाथी से कुचलवाने की कोशिश की – प्रहलाद ज़िंदा रहा।
हर बार हिरण्यकशिपु को लगता – “अब यह मरेगा।”
हर बार विष्णु की कृपा से प्रहलाद बचता गया।
6. होलिका दहन की रात:
हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान था – वह आग में नहीं जल सकती थी।
एक योजना बनी – “प्रहलाद को होलिका की गोद में बिठाकर आग में बैठा दो।”
आग जलाई गई। होलिका बैठी, प्रहलाद को गोद में लिया।
पर क्या हुआ?
होलिका जल गई, प्रहलाद बच गया।
वरदान की शक्ति भक्ति के सामने हार गई।
7. आखिरी टकराव:
अब हिरण्यकशिपु का धैर्य टूट गया।
वह सिंहासन पर बैठा, तलवार लेकर बोला – “बोल! कहाँ है तेरा विष्णु? क्या वह इस खंभे में भी है?”
प्रहलाद ने हाथ जोड़कर कहा – “हाँ पिता, भगवान तो हर जगह हैं।”
गुस्से में आकर हिरण्यकशिपु ने खंभे पर वार किया।
धड़ाम!
खंभा फटा – तेज़ गर्जना हुई – और उसमें से निकले एक भयंकर रूप:
न इंसान, न जानवर – बल्कि आधा शेर, आधा मनुष्य।
नरसिम्ह!
8. नरसिम्ह का रूप और वध:
नरसिम्ह का रूप इतना तेज़ था कि देवता भी थर्रा गए।
समय था – संध्या।
जगह – महल का दरवाज़ा (न अंदर, न बाहर)।
नरसिम्ह ने हिरण्यकशिपु को गोद में उठाया (न जमीन, न आकाश)।
न तलवार चलाई, न भाला – बस अपने नखों से चीर डाला।
इस तरह ब्रह्मा के वरदान की हर शर्त पूरी हुई, पर अधर्मी राजा मारा गया।
9. प्रहलाद का प्रेम और नरसिम्ह का क्रोध शांत:
पर नरसिम्ह का क्रोध शांत नहीं हो रहा था।
देवता डरते-डरते पास आए – “प्रभु, शांत हो जाइए।”
नहीं माने।
तब प्रहलाद धीरे से आगे आया। उसके आँखों में आँसू थे।
“प्रभु, मैंने आपको पुकारा – आपने मेरी रक्षा की। अब आप पिता के दोषों को क्षमा कीजिए।”
नरसिम्ह ने प्रहलाद को देखा, और मुस्कराए।
धीरे-धीरे उनका रूप शांत होने लगा।
वह विशाल सिंह से फिर मधुर, सुंदर रूप में आ गए।
10. एक युग का अंत, एक युग की शुरुआत:
* प्रहलाद राजा बना – लेकिन वह अहंकारी नहीं था।
* उसने न्याय किया, गरीबों की सेवा की और हर सुबह भगवान विष्णु की पूजा करता।
* देवताओं ने आकाश में पुष्पवर्षा की और धरती पर फिर से शांति लौट आई।
11. नरसिम्हा – सिर्फ पुराणों में नहीं, आज भी:
कहानी यहीं खत्म नहीं होती।
कहानी के अंत में एक दृश्य आता है –
एक आधुनिक बच्चा स्कूल में अकेला है, दुखी है, उसके माता-पिता लड़ते हैं।
वह एक किताब पढ़ता है – "नरसिम्ह अवतार" – और रात को सपने में एक तेजस्वी रूप उसके पास आता है।
“डरो मत,” वह आवाज़ कहती है, “मैं आज भी हूँ। जब भक्ति सच्ची हो, तब मैं हर युग में आता हूँ।”
सीख बच्चों के लिए:
* सच्ची भक्ति में ताकत होती है।
* अहंकार चाहे कितना भी बड़ा हो, वो गिरता ज़रूर है।
* भगवान हर जगह होते हैं – अंदर भी, बाहर भी।
* प्रेम, दया और सत्य ही असली शक्ति हैं।
* भगवान को देखने के लिए आंख नहीं, भक्ति चाहिए।
अंतिम वाक्य:
* जब भी कोई सच्चे मन से पुकारता है,
* जब भी किसी बच्चे का विश्वास डगमगाता है,
* जब भी अधर्म सिर उठाता है—
* तो कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में—
नरसिम्ह फिर प्रकट होते हैं।
निष्कर्ष — "महावतार नरसिम्हा" की कहानी से क्या सीखें?
महावतार नरसिम्हा की यह मूल और सरल कहानी हमें यह सिखाती है कि —
1. सच्ची भक्ति सबसे बड़ी शक्ति होती है — प्रहलाद जैसा छोटा बालक भी अगर सच्चे मन से भगवान को याद करे, तो खुद भगवान उसके लिए प्रकट हो सकते हैं।
2. अहंकार का अंत निश्चित है — हिरण्यकशिपु जितना भी शक्तिशाली था, लेकिन उसका घमंड ही उसकी हार का कारण बना।
3. भगवान हर समय और हर स्थान में होते हैं — न मंदिर की ज़रूरत है, न मूर्ति की; बस सच्चा दिल चाहिए।
4. धैर्य और विश्वास ज़रूरी हैं — कठिनाई आएगी, लोग तंग करेंगे, पर जो डटे रहते हैं, वही सच्चे भक्त होते हैं।
5. हर युग में भगवान आते हैं — नरसिम्हा सिर्फ पुरानी कथा नहीं हैं, वे हर युग, हर समय में भक्ति की रक्षा के लिए किसी न किसी रूप में आते हैं।
यह कहानी सिर्फ धर्म की नहीं, बल्कि मानवता, प्रेम, और आत्मबल की है। बच्चों के लिए यह प्रेरणा है कि डर को हराया जा सकता है, बुराई पर अच्छाई की जीत होती है, और हर दिल में एक "प्रहलाद" हो सकता है — बस सच्चे मन से भगवान को पुकारिए, वे जरूर आएँगे।
🙏 जय नरसिंह देव! 🙏
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